Monday, October 6, 2008

इन्हें पहचानिए!

अगर आपसे कोई पूछे कि देश में पहले "कसाई (मुसलमान) फिर ईसाई'... का नारा किसने दिया तो इसका जवाब होगा देश में सक्रिय हिन्दूवादी संगठनों ने। फिर आपसे कोई पूछे कि "कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे' का नारा किसने दिया तब भी कहेंगे-हिन्दूवादी संगठनों ने। अगर कोई पूछे कि शांतिदूत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या किसने की तो जवाब होगा-हिन्दूवादी संगठनों ने। उड़ीसा में वर्ष 1992 में ईसाई ग्राहम स्टेन्स व उनके बच्चों की हत्या किसने की तब भी जवाब होगा-हिन्दूवादी संगठनों ने। गांधी के गुजरात को साम्प्रदायिकता की आग में किसने झोंका-तब भी जवाब होगा-राज्य प्रायोजित हिन्दूवादी संगठनों ने। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि को विध्वंस किसने किया, तब भी जवाब होगा-अतिवादी हिन्दूत्ववादी संगठनों ने। फिर अगर कोई पूछे कि उड़ीसा के कंधमाल में 23 अगस्त को हिन्दूवादी नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या किसने की तो जवाब होगा-पता नहीं, लेकिन इस हत्या की जिम्मेवारी भाकपा (माओवादी) से जुड़े नक्सलियों ने ली है। फिर भी इसकी सही जानकारी पुलिसिया अनुसंधान के बाद ही पता चल सकेगा। तो फिर अगर आपसे कोई पूछे कि लक्ष्मणानंद को शहीद कौन कह रहा है तो जवाब होगा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल सरीखे हिन्दूवादी संगठनों ने। अगर कोई पूछे के स्वामी की हत्या के बाद उड़ीसा, कर्नाटक, केरल समेत देश के अन्य भागों में साम्प्रदायिकता का ताना-बाना कौन बुन रहा है? आखिर किसके उकसावे पर एकतरफा ईसाईयों का कत्लेआम शुरू है। शायद तब भी जवाब होगा-हिन्दूवादी संगठनों ने। तो फिर सवाल उठता है कि इन मुट्ठीभर हिन्दूवादी संगठनों की आड़ में आखिर कबतक हिन्दुस्तान बदनाम होता रहेगा? कबतक मानवता तार-तार होती रहेगी? हिन्दुस्तानियों के खून के प्यासे आखिर कबतक अपने ही भाई-बहनों का कत्लेआम कर अपनी प्यास बुझाते रहेंगे? इस अंतहीन सिलसिला का अंत आखिर कब होगा? इसका जवाब कहां और किसके पास है? इस मुल्क में आखिर कबतक कभी मुसलमानों का तो कभी ईसाईयों का कत्लेआम होते रहेगा? भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आखिर कबतक धर्मांतरण का झूठा स्वांग रचा जाता रहेगा? सत्ता के सौदागरों के हाथों तबतक देश कलंकित होते रहेगा?
उड़ीसा, कर्नाटक, झारखंड समेत देश के अन्य हिस्सों में धर्मांतरित दलित हिन्दुओं, आदिवासियों का दुनाह तो सिर्फ यही है न, कि वे अपने स्वाभिमान के लिए धर्मांतरण का सहारा लिया। इसका फायदा भी समाज में दिखा। लाखों वर्षों से "मनु स्मृति' की चक्की में पीसते आ रहे दलितों व आदिवासियों में शिक्षा का प्रसार हुआ। प्रगतिशील व सभ्य समाज की अवधारणा अगर इस देश में कहीं से आई है तो वह ब्रिटेन की देन है और इसके लिए अंग्रेजों को धन्यवाद दिया जाना चाहिए। सचमुच उन्होंने ही सामंती दासता के जकड़न में फंसे भारतीयों को जीने की कला सीखाई।
इतिहास गवाह है। इसी देश में हिन्दू सम्राट चक्रवर्ती अशोक जब कंधमाल के आसपास के इलाकों में बेइन्तहां कत्लेआम बरपाने के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार किया था तब तो हिन्दूओं को कोई खतरा ही नहीं हुआ। एक हजार वर्षों तक मुसलमानों की हुकूमत से हिन्दूओं को कोई खास खतरा नहीं हुआ। डचों, फ्रांसीसियों व अंग्रेजों से भारतीयों को कोई खतरा नहीं हुआ तो फिर आज के जमाने में किससे हिन्दुस्तानियों को खतरा महसूस हो रहा है। आखिर समाज के पिछड़े, दलित इलाके के लोगों ने अपने स्वाभिमान व सुख-सुविधा के लिए धर्म-परिवर्तन कर ही लिया तो हिन्दुओं पर कौन सा पहाड़ टूट गया? दरिंदों को समझना चाहिए कि आज धर्म के नाम पर देश के विभिन्न हिस्सों में बहाये जा रहे खून भी हिन्दुस्तानियों का ही है। आखिर धर्म व जाति के नाम पर नफरत कौन फैला रहा है? आखिर दलितोंे को क्या, कभी किसी मनुवादियों से स्वाभिमान से जीने देना पसन्द किया? शायद नहीं। खुले समाज में आखिर कौन महिलाओं को बच्चा पैदा करने वाली मशीन समझता है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आखिर कौन लगाम लगाना चाहता है? गाय को माता मानने वाले लोग क्यों भूल रहे हैं कि देश की केन्द्रीय राजधानी दिल्ली समेत अन्य शहरों में हजारों विदेशी नस्ल की गायें आवारा कुत्तों की तरह रोज सड़कों पर घूमती रहती हैं। जिस देश में हर महीने में देवियों की पूजा होती हैं उसी देश में आए दिन क्यों मासूमों के साथ बलात्कार की घटनाएं घटती हैं? आश्चर्य तो यह कि बजरंग के संस्थापक व सांसद विनय कटियार पर वर्ष 1992 में ही एक हिन्दू कन्या के साथ बलात्कार का आरोप लग चुका है। फिर भी यह संगठन हिन्दुओं का ठेकेदार बना हुआ है। याद रहे कि दुष्कर्मियों का न कोई जाति होती है और न ही कोई धर्म। उनके शिकार हिन्दू कन्याएं भी होती हैं और अन्य दूसरे समुदाय की कन्याएं भीं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में जितने भी दुष्कर्म की घटनाएं हुई हैं उनमें से अधिकांश घटनाओं को लंपट हिन्दू लड़कों ने अंजाम दिया है और शिकार भी हिन्दू कन्याओं को ही होना पड़ा है। आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार है? आखिर समाज की इन कुरीतियों की ओर बजरंग दल का ध्यान क्यों नहीं जाता?
वेलेंटाइन डे के नाम पर प्यार का इजहार करने वाली जोड़ियों पर बजरंग दल क्यों कहर बरपाता है? इस मौके की ताक में मुस्लिम व ईसाई ही नहीं, देश की लाखों-करोड़ों हिन्दू युवतियां रहती हैं। इस मौके पर मुंबई, दिल्ली से लेकर अन्य शहरों में प्यार कर इजहार कर रहने वाली हिन्दू किशोरियों को भी बजरंग दल ने नहीं छोड़ा? हिन्दूवादी संगठन आखिर कौन सी भारतीय संस्कृति की बात करती है? क्या इसके कार्यकर्ता भूल रहे हैं कि सूर्य पुत्र कर्ण का जन्म कुंवारी कन्या कुन्ती ने दी थी। जगत जननी सीता ने अपना ब्याह स्वयंवर में रचाया था। अपने को क्षत्रीय कहलाने वाले राम व लक्ष्मण ने रावण की बहन सूर्पनखा का नाक इसलिए काट लिया था कि वह अपनी जवानी का इजहार उनके सामने कर रही थी। यही हिन्दू संस्कृति है जिसने भरी सभा में अपने ही परिवार की एक सदस्या द्रोपदी का चीरहरण कर तब सभ्य समाज को शर्मसार कर दिया था। क्या यह बात किसी से छुपी हुई है कि इन्द्र के दरबार में अप्सराओंं से आंख लड़ाने की इजाजत सिर्फ और सिर्फ इन्द्र को ही थी। क्या प्यार भी बंदूक के बल से हो सकता है? उपद्रवी हिन्दुओं! अभी भी समय है। चेतो। इतिहास से सीख लो। नहीं तो सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया था। उस समय अशोक के धुआंधार धर्म प्रचार की वजह से बौद्ध धर्म का परचम पूरे दुनिया में लहराया था। आज तुम्हारे ही कुकर्मों का परिणाम है कि यहां के आदिवासी व दलित धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। बंदूक की भाषा न तो कभी सभ्य समाज समझा है और न ही आगे भी समझने वाला है। इसलिए संभालो अपने-आप को। बचाओ, भारत की अस्मिता और नये सिरे से गढ़ो भारत की तकदीर। बनाओ स्वामी विवेकानंद का भारत, जिसमें न कहीं ऊ ंच-नीच का भेदभाव रहे और न ही छुआछूत की भावना समाज में रहे। न ही कोई शोषक हो और न हो कोई शासक।
कम नहीं है बजरंग दल
बजरंग दल एक बार फिर अपनी स्थापना के 25वें वर्षगांठ पर यह संगठन चर्चा में है। बजरंग दल ने देश में हालात ऐसे उत्पन्न कर दिये हैं कि देश की धर्मनिरपेक्ष पार्टियां एक बार फिर इस पर प्रतिबंध की मांग करने लगी हैं। बताते चलें कि इसके पहले भी इस संगठन पर दो बार प्रतिबंध लग चुके हैं। बजरंग दल के पूर्व संयोजक और भाजपा के सांसद विनय कटियार बताते हैं कि बजरंग दल की स्थापना विहिप के युवा दल के रूप में की गई थी लेकिन उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि आप पर 13 वर्षीय एक लड़की के साथ दुुष्कर्म का आरोप भी लगा है। क्या वह लड़की गैर-हिन्दू थी? या फिर गैर-हिन्दू लड़कियों के साथ बलात्कार जायज है
बजरंग दल नेता प्रकाश शर्मा कहते हैं, ""उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती पिछले 40 वर्षों से वहां के वनवासियों के बीच काम कर रहे थे। उनकी हत्या के कारण वनवासियों में रोष उत्पन्न हुआ और फिर जो कुछ हुआ, वह उस रोष की प्रतिक्रिया थी। भारत सरकार और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल इसे हमारे सिर मढ़ने का प्रयास कर रहें हैं। मेरा यह मानना है कि कर्नाटक और उड़ीसा की घटनाओं में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद कहीं शामिल नहीं है।'' दूसरी ओर ईसाई नेता फ़ादर डोमेनिक इमैनुअल का आरोप है-""देश में ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा के पीछे बजरंग दल का हाथ है।'' बजरंग दल के संयोजक चाहे हिंसा के आरोपों को ख़ारिज करें लेकिन अपने संगठन की हिन्दू राष्ट्र स्थापना की मंशा को ज़रूर स्वीकार करते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहेगा। फिर भी, इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि इसी वर्ष अगस्त में कानपुर में बम बनाते हुए दो लोग मारे गए थे। पुलिस का कहना है कि इनका संबंध बजरंग दल से है। वर्ष 2006 में नांदेड में बम बनाते बजरंग दल के दो तथाकथित सदस्य मारे गए थे। बजरंग दल के अमानवीय हरकत व हिंसक तेवर पर आरएसएस के सदस्य रह चुके और अब संगठन पर पैनी निगाह रखने वाले डीएल गोयल कहते हैं-"अकेले बजरंग दल ही क्यों? अन्य कई हिन्दूवादी संगठन भी हैं जो संविधान को नहीं मानते और इन पर अंकुश लगाना जरूरी है।' उनका यह भी कहना है कि विश्व हिन्दू परिषद ने आज तक जो कुछ भी किया वह भारतीय संविधान के हिसाब से गलत है। उन्होंने बजरंग दल प्रमुख के एक बयान का हवाला देते हुए कहा, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र बनाना है। लेकिन सवाल उठता है कि देश तो हिन्दू राष्ट्र नहीं है। तो इसका मतलब है कि माओवादियों की तरह से वह भी एक अलग संविधान बनान चाहते हैं। इसलिए ही ये संगठन भारतीय संविधान के खिलाफ काम कर रहे हैं।'' मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता जावेद आनंद कहते हैं-"नांदेड में बम बना रहे कार्यकर्ता बजरंग दल के ही थे। इसके पक्के सबूत महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते के पास मौजूद है। उनका कहना है कि 5-6 अप्रैल, 2006 में नांदेड में एक सेवानिवृत अभियंता के घर में बम विस्फोट हुआ, उस समय वहां छह लोग उपस्थित थे। इसके बाद पुलिस ने अनुसंधान रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले रिपोर्ट जारी किये। पुलिस का कहना है कि वर्ष 2003-04 में परभणी, जालना और पूर्णा की मस्जिदों में हुए धमाकों में बजरंग दल से जुड़े दर्जनों कार्यकर्ता शामिल थे। इन लोगों ने पूना में बम बनाने का प्रशिक्षण लिया था। मात्र एक घटना से ही स्पष्ट है कि ये लोग बम बनाने व उसे फोड़ने में लगे हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि लोकतांत्रिक देश में उन्हें यह भी सिखाया जा रहा है कि अगर एक कार्यकर्ता दूसरे समुदाय के चार सौ से कम लोगों को मारा तो वह "हिजरा' कहा जाएगा। तो भी सवाल उठता है कि सिमी व बजरंग दल में क्या अंतर है? और अगर वाकई सरकार धर्म निरपेक्ष है तो सिमी समेत अन्य कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के साथ ही बजरंग दल समेत दूसरे चरम कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों पर भी प्रतिबंध लगाने जाने की जरूरत है। इधर, राजद नेता व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव कहते हैं-"जबतक ठोकर नहीं लगती आदमी बढ़ता जाता है, कहीं कोई स्पीड ब्रेकर नहीं है। सरकार के पास इन लोगों की सूची है। इन्हें जेल में बंद कर दीजिए।'
हालांकि सिमी के साथ बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात पर इसके नेता भड़क उठते हैं। दल के नेता प्रकाश शर्मा कहते हैं कि सिमी से जुड़े लोग कश्मीर घाटी में पाकिस्तान का झंडा फहराते हैं। इसके लोग बम बलास्ट करते हैं। इस संगठन पर आइएसआइ व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से संबंध का आरोप है वहीं जावेद आनंद कहते हैं कि अगर अनलॉफ़ुल एक्टीविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट 1967 के प्रावधानों के अनुसार सिमी पर प्रतिबंध लगता है तो बजरंग दल पर इससे दस गुना ज्यादा प्रतिबंध लगना चाहिए।
प्रकाश शर्मा बताते हैं-"हम भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे। भारत के हिन्दू राष्ट्र बनने पर ही देश सुखी होगा। हिन्दू अपमानित महसूस कर रहा है। हिन्दू मारा जा रहा है और उसके बाद हिन्दुओं को ही कटघरे में खड़ा भी किया जा रहा है।'

इन्हें पहचानिए!

अगर आपसे कोई पूछे कि देश में पहले "कसाई (मुसलमान) फिर ईसाई'... का नारा किसने दिया तो इसका जवाब होगा देश में सक्रिय हिन्दूवादी संगठनों ने। फिर आपसे कोई पूछे कि "कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे' का नारा किसने दिया तब भी कहेंगे-हिन्दूवादी संगठनों ने। अगर कोई पूछे कि शांतिदूत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या किसने की तो जवाब होगा-हिन्दूवादी संगठनों ने। उड़ीसा में वर्ष 1992 में ईसाई ग्राहम स्टेन्स व उनके बच्चों की हत्या किसने की तब भी जवाब होगा-हिन्दूवादी संगठनों ने। गांधी के गुजरात को साम्प्रदायिकता की आग में किसने झोंका-तब भी जवाब होगा-राज्य प्रायोजित हिन्दूवादी संगठनों ने। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि को विध्वंस किसने किया, तब भी जवाब होगा-अतिवादी हिन्दूत्ववादी संगठनों ने। फिर अगर कोई पूछे कि उड़ीसा के कंधमाल में 23 अगस्त को हिन्दूवादी नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या किसने की तो जवाब होगा-पता नहीं, लेकिन इस हत्या की जिम्मेवारी भाकपा (माओवादी) से जुड़े नक्सलियों ने ली है। फिर भी इसकी सही जानकारी पुलिसिया अनुसंधान के बाद ही पता चल सकेगा। तो फिर अगर आपसे कोई पूछे कि लक्ष्मणानंद को शहीद कौन कह रहा है तो जवाब होगा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल सरीखे हिन्दूवादी संगठनों ने। अगर कोई पूछे के स्वामी की हत्या के बाद उड़ीसा, कर्नाटक, केरल समेत देश के अन्य भागों में साम्प्रदायिकता का ताना-बाना कौन बुन रहा है? आखिर किसके उकसावे पर एकतरफा ईसाईयों का कत्लेआम शुरू है। शायद तब भी जवाब होगा-हिन्दूवादी संगठनों ने। तो फिर सवाल उठता है कि इन मुट्ठीभर हिन्दूवादी संगठनों की आड़ में आखिर कबतक हिन्दुस्तान बदनाम होता रहेगा? कबतक मानवता तार-तार होती रहेगी? हिन्दुस्तानियों के खून के प्यासे आखिर कबतक अपने ही भाई-बहनों का कत्लेआम कर अपनी प्यास बुझाते रहेंगे? इस अंतहीन सिलसिला का अंत आखिर कब होगा? इसका जवाब कहां और किसके पास है? इस मुल्क में आखिर कबतक कभी मुसलमानों का तो कभी ईसाईयों का कत्लेआम होते रहेगा? भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आखिर कबतक धर्मांतरण का झूठा स्वांग रचा जाता रहेगा? सत्ता के सौदागरों के हाथों तबतक देश कलंकित होते रहेगा?
उड़ीसा, कर्नाटक, झारखंड समेत देश के अन्य हिस्सों में धर्मांतरित दलित हिन्दुओं, आदिवासियों का दुनाह तो सिर्फ यही है न, कि वे अपने स्वाभिमान के लिए धर्मांतरण का सहारा लिया। इसका फायदा भी समाज में दिखा। लाखों वर्षों से "मनु स्मृति' की चक्की में पीसते आ रहे दलितों व आदिवासियों में शिक्षा का प्रसार हुआ। प्रगतिशील व सभ्य समाज की अवधारणा अगर इस देश में कहीं से आई है तो वह ब्रिटेन की देन है और इसके लिए अंग्रेजों को धन्यवाद दिया जाना चाहिए। सचमुच उन्होंने ही सामंती दासता के जकड़न में फंसे भारतीयों को जीने की कला सीखाई।
इतिहास गवाह है। इसी देश में हिन्दू सम्राट चक्रवर्ती अशोक जब कंधमाल के आसपास के इलाकों में बेइन्तहां कत्लेआम बरपाने के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार किया था तब तो हिन्दूओं को कोई खतरा ही नहीं हुआ। एक हजार वर्षों तक मुसलमानों की हुकूमत से हिन्दूओं को कोई खास खतरा नहीं हुआ। डचों, फ्रांसीसियों व अंग्रेजों से भारतीयों को कोई खतरा नहीं हुआ तो फिर आज के जमाने में किससे हिन्दुस्तानियों को खतरा महसूस हो रहा है। आखिर समाज के पिछड़े, दलित इलाके के लोगों ने अपने स्वाभिमान व सुख-सुविधा के लिए धर्म-परिवर्तन कर ही लिया तो हिन्दुओं पर कौन सा पहाड़ टूट गया? दरिंदों को समझना चाहिए कि आज धर्म के नाम पर देश के विभिन्न हिस्सों में बहाये जा रहे खून भी हिन्दुस्तानियों का ही है। आखिर धर्म व जाति के नाम पर नफरत कौन फैला रहा है? आखिर दलितोंे को क्या, कभी किसी मनुवादियों से स्वाभिमान से जीने देना पसन्द किया? शायद नहीं। खुले समाज में आखिर कौन महिलाओं को बच्चा पैदा करने वाली मशीन समझता है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आखिर कौन लगाम लगाना चाहता है? गाय को माता मानने वाले लोग क्यों भूल रहे हैं कि देश की केन्द्रीय राजधानी दिल्ली समेत अन्य शहरों में हजारों विदेशी नस्ल की गायें आवारा कुत्तों की तरह रोज सड़कों पर घूमती रहती हैं। जिस देश में हर महीने में देवियों की पूजा होती हैं उसी देश में आए दिन क्यों मासूमों के साथ बलात्कार की घटनाएं घटती हैं? आश्चर्य तो यह कि बजरंग के संस्थापक व सांसद विनय कटियार पर वर्ष 1992 में ही एक हिन्दू कन्या के साथ बलात्कार का आरोप लग चुका है। फिर भी यह संगठन हिन्दुओं का ठेकेदार बना हुआ है। याद रहे कि दुष्कर्मियों का न कोई जाति होती है और न ही कोई धर्म। उनके शिकार हिन्दू कन्याएं भी होती हैं और अन्य दूसरे समुदाय की कन्याएं भीं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में जितने भी दुष्कर्म की घटनाएं हुई हैं उनमें से अधिकांश घटनाओं को लंपट हिन्दू लड़कों ने अंजाम दिया है और शिकार भी हिन्दू कन्याओं को ही होना पड़ा है। आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार है? आखिर समाज की इन कुरीतियों की ओर बजरंग दल का ध्यान क्यों नहीं जाता?
वेलेंटाइन डे के नाम पर प्यार का इजहार करने वाली जोड़ियों पर बजरंग दल क्यों कहर बरपाता है? इस मौके की ताक में मुस्लिम व ईसाई ही नहीं, देश की लाखों-करोड़ों हिन्दू युवतियां रहती हैं। इस मौके पर मुंबई, दिल्ली से लेकर अन्य शहरों में प्यार कर इजहार कर रहने वाली हिन्दू किशोरियों को भी बजरंग दल ने नहीं छोड़ा? हिन्दूवादी संगठन आखिर कौन सी भारतीय संस्कृति की बात करती है? क्या इसके कार्यकर्ता भूल रहे हैं कि सूर्य पुत्र कर्ण का जन्म कुंवारी कन्या कुन्ती ने दी थी। जगत जननी सीता ने अपना ब्याह स्वयंवर में रचाया था। अपने को क्षत्रीय कहलाने वाले राम व लक्ष्मण ने रावण की बहन सूर्पनखा का नाक इसलिए काट लिया था कि वह अपनी जवानी का इजहार उनके सामने कर रही थी। यही हिन्दू संस्कृति है जिसने भरी सभा में अपने ही परिवार की एक सदस्या द्रोपदी का चीरहरण कर तब सभ्य समाज को शर्मसार कर दिया था। क्या यह बात किसी से छुपी हुई है कि इन्द्र के दरबार में अप्सराओंं से आंख लड़ाने की इजाजत सिर्फ और सिर्फ इन्द्र को ही थी। क्या प्यार भी बंदूक के बल से हो सकता है? उपद्रवी हिन्दुओं! अभी भी समय है। चेतो। इतिहास से सीख लो। नहीं तो सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया था। उस समय अशोक के धुआंधार धर्म प्रचार की वजह से बौद्ध धर्म का परचम पूरे दुनिया में लहराया था। आज तुम्हारे ही कुकर्मों का परिणाम है कि यहां के आदिवासी व दलित धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। बंदूक की भाषा न तो कभी सभ्य समाज समझा है और न ही आगे भी समझने वाला है। इसलिए संभालो अपने-आप को। बचाओ, भारत की अस्मिता और नये सिरे से गढ़ो भारत की तकदीर। बनाओ स्वामी विवेकानंद का भारत, जिसमें न कहीं ऊ ंच-नीच का भेदभाव रहे और न ही छुआछूत की भावना समाज में रहे। न ही कोई शोषक हो और न हो कोई शासक।
कम नहीं है बजरंग दल
बजरंग दल एक बार फिर अपनी स्थापना के 25वें वर्षगांठ पर यह संगठन चर्चा में है। बजरंग दल ने देश में हालात ऐसे उत्पन्न कर दिये हैं कि देश की धर्मनिरपेक्ष पार्टियां एक बार फिर इस पर प्रतिबंध की मांग करने लगी हैं। बताते चलें कि इसके पहले भी इस संगठन पर दो बार प्रतिबंध लग चुके हैं। बजरंग दल के पूर्व संयोजक और भाजपा के सांसद विनय कटियार बताते हैं कि बजरंग दल की स्थापना विहिप के युवा दल के रूप में की गई थी लेकिन उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि आप पर 13 वर्षीय एक लड़की के साथ दुुष्कर्म का आरोप भी लगा है। क्या वह लड़की गैर-हिन्दू थी? या फिर गैर-हिन्दू लड़कियों के साथ बलात्कार जायज है। ़
बजरंग दल नेता प्रकाश शर्मा कहते हैं, ""उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती पिछले 40 वर्षों से वहां के वनवासियों के बीच काम कर रहे थे। उनकी हत्या के कारण वनवासियों में रोष उत्पन्न हुआ और फिर जो कुछ हुआ, वह उस रोष की प्रतिक्रिया थी। भारत सरकार और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल इसे हमारे सिर मढ़ने का प्रयास कर रहें हैं। मेरा यह मानना है कि कर्नाटक और उड़ीसा की घटनाओं में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद कहीं शामिल नहीं है।'' दूसरी ओर ईसाई नेता फ़ादर डोमेनिक इमैनुअल का आरोप है-""देश में ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा के पीछे बजरंग दल का हाथ है।'' बजरंग दल के संयोजक चाहे हिंसा के आरोपों को ख़ारिज करें लेकिन अपने संगठन की हिन्दू राष्ट्र स्थापना की मंशा को ज़रूर स्वीकार करते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहेगा। फिर भी, इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि इसी वर्ष अगस्त में कानपुर में बम बनाते हुए दो लोग मारे गए थे। पुलिस का कहना है कि इनका संबंध बजरंग दल से है। वर्ष 2006 में नांदेड में बम बनाते बजरंग दल के दो तथाकथित सदस्य मारे गए थे। बजरंग दल के अमानवीय हरकत व हिंसक तेवर पर आरएसएस के सदस्य रह चुके और अब संगठन पर पैनी निगाह रखने वाले डीएल गोयल कहते हैं-"अकेले बजरंग दल ही क्यों? अन्य कई हिन्दूवादी संगठन भी हैं जो संविधान को नहीं मानते और इन पर अंकुश लगाना जरूरी है।' उनका यह भी कहना है कि विश्व हिन्दू परिषद ने आज तक जो कुछ भी किया वह भारतीय संविधान के हिसाब से गलत है। उन्होंने बजरंग दल प्रमुख के एक बयान का हवाला देते हुए कहा, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र बनाना है। लेकिन सवाल उठता है कि देश तो हिन्दू राष्ट्र नहीं है। तो इसका मतलब है कि माओवादियों की तरह से वह भी एक अलग संविधान बनान चाहते हैं। इसलिए ही ये संगठन भारतीय संविधान के खिलाफ काम कर रहे हैं।'' मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता जावेद आनंद कहते हैं-"नांदेड में बम बना रहे कार्यकर्ता बजरंग दल के ही थे। इसके पक्के सबूत महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते के पास मौजूद है। उनका कहना है कि 5-6 अप्रैल, 2006 में नांदेड में एक सेवानिवृत अभियंता के घर में बम विस्फोट हुआ, उस समय वहां छह लोग उपस्थित थे। इसके बाद पुलिस ने अनुसंधान रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले रिपोर्ट जारी किये। पुलिस का कहना है कि वर्ष 2003-04 में परभणी, जालना और पूर्णा की मस्जिदों में हुए धमाकों में बजरंग दल से जुड़े दर्जनों कार्यकर्ता शामिल थे। इन लोगों ने पूना में बम बनाने का प्रशिक्षण लिया था। मात्र एक घटना से ही स्पष्ट है कि ये लोग बम बनाने व उसे फोड़ने में लगे हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि लोकतांत्रिक देश में उन्हें यह भी सिखाया जा रहा है कि अगर एक कार्यकर्ता दूसरे समुदाय के चार सौ से कम लोगों को मारा तो वह "हिजरा' कहा जाएगा। तो भी सवाल उठता है कि सिमी व बजरंग दल में क्या अंतर है? और अगर वाकई सरकार धर्म निरपेक्ष है तो सिमी समेत अन्य कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के साथ ही बजरंग दल समेत दूसरे चरम कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों पर भी प्रतिबंध लगाने जाने की जरूरत है। इधर, राजद नेता व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव कहते हैं-"जबतक ठोकर नहीं लगती आदमी बढ़ता जाता है, कहीं कोई स्पीड ब्रेकर नहीं है। सरकार के पास इन लोगों की सूची है। इन्हें जेल में बंद कर दीजिए।'
हालांकि सिमी के साथ बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात पर इसके नेता भड़क उठते हैं। दल के नेता प्रकाश शर्मा कहते हैं कि सिमी से जुड़े लोग कश्मीर घाटी में पाकिस्तान का झंडा फहराते हैं। इसके लोग बम बलास्ट करते हैं। इस संगठन पर आइएसआइ व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से संबंध का आरोप है वहीं जावेद आनंद कहते हैं कि अगर अनलॉफ़ुल एक्टीविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट 1967 के प्रावधानों के अनुसार सिमी पर प्रतिबंध लगता है तो बजरंग दल पर इससे दस गुना ज्यादा प्रतिबंध लगना चाहिए।
प्रकाश शर्मा बताते हैं-"हम भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे। भारत के हिन्दू राष्ट्र बनने पर ही देश सुखी होगा। हिन्दू अपमानित महसूस कर रहा है। हिन्दू मारा जा रहा है और उसके बाद हिन्दुओं को ही कटघरे में खड़ा भी किया जा रहा है।'