Sunday, November 30, 2008

सुशासन की हकीकत

सूबे में जबतक सुशासन नहीं आएगा, यहां के हालात नहीं सुधर सकते। आप हमें तीन महीने का समय दीजिए, मेरी सरकार बनते ही भयमुक्त समाज का निर्माण होगा जिसमें न तो दोषियों को बचाया जाएगा और न ही निर्दोषों को फंसाया ही जाएगा।'
ये वायदे वर्ष 2005 के चुनावी सभाओं में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करते फिर रहे थे। लालू-राबड़ी शासनकाल में लगातार बिगड़ती जा रही कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने में नीतीश सरकार ने बहुत हद तक सफलता भी पाई है। देशभर में सबसे अधिक अपराधियों (26125) को सजा इसी राज्य में हुए। संगीन अपराध के जुर्म में 80 अपराधियों को निचली अदालत से फांसी की सजा हुई। जबकि 5616 को उम्रकैद तथा 1598 अपराधियों को 10 वर्ष से अधिक का कारावास की सजा सुनाई गयी है। 10 वर्ष से कम सजायाफ्ता अपराधियों की संख्या 18831 है। के बाद पहली बार बाहुबलियों पर शिकंजा कसा गया। हत्या के जुर्म में पूर्णिया के राजद सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, सीवान के सांसद मो.शहाबुद्दीन, जिलाधिकारी जी.कृष्णैय्या हत्याकांड में पूर्व सांसद आनंद मोहन व उनकी पत्नी लवली आनंद, पूर्व विधायक अरुण कुमार व अखलाक अहमद, पूर्व विधायक राजन तिवारी तथा जदयू विधायक मुन्ना शुक्ला को फांसी व अन्य सजाएं सुनाई गयीं, वहीं दोहरे हत्याकांड के आरोपी लोजपा सांसद सूरजभान, डा. रमेश चन्द्रा अपहरण कांड में जदयू से निलंबित विधायक सुनील पांडेय, पूर्व मंत्री आदित्य सिंह, सपा विधायक रामदेव यादव समेत दर्जनभर नेताओं को निचली अदालत में सजा मुकर्रर हुई हैं।
हत्या के जुर्म में दाउदनगर अनुमंडल कारा में बंद गोह के जदयू विधायक प्रो.रणविजय कुमार, अतरी के पूर्व विधायक राजेंद्र यादव, पूर्व मंत्री सुरेंद्र प्रसाद यादव, बनियापुर के जदयू विधायक धूमल सिंह, लोजपा विधायक रामा सिंह, डेहरी के विधायक प्रदीप जोशी, भाजपा विधायक नित्यानंद राय, राजद विधायक बब्लू देव समेत विभिन्न दलों के दो दर्जन विधायकों पर कानून की तलवार लटक रही है। {H$Z हाल के दिनों में जिस तरीके से जदयू सांसद प्रभुनाथ सिंह को दोहरे हत्याकांड से उबारने के लिए नियमों को ताक पर रखा गया उससे सरकार के इरादों पर प्रश्नचिह्न खड़े होने लगे हैं। कहा जाता है कि इस हत्याकांड की सुनवाई के दौरान जब में प्रभुनाथ ने अपने बाहुबल का इस्तेमाल किया तो इस मामले को भागलपुर की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया। इस पर हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार भी लगाई। मामले की सुनवाई भागलपुर में शुरू हुई लेकिन वहां भी सरकारी हस्तक्षेप के मामले उजागर हुए। अंत में पटना सिविल कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई जहां से वे बाइज्जत बरी हो गये। हालांकि उक्त सांसद के एक अन्य मामले की सुनवाई पटना सिविल कोर्ट में चल रही है। पर इस बात की चर्चा है कि क्या इस बार भी गवाहों को सरकारी हथकंडों का इस्तेमाल कर प्रभावित किया जाएगा? इस बाबत पूर्व विधि मंत्री व राजद नेता शकील अहमद खान कहते हैंे कि सरकार राजनीतिक द्वेष से काम कर रही है। प्रभुनाथ सिंह प्रकरण में सारे नियमों को ताक पर रखा गया है और अनुभवहीन (10 वर्ष से कम अनुभव) एपीपी से बहस करवायी गयी। गवाहों को भी डराया-धमकाया गया। जबकि विपक्षी दलों के नेताओं को फटाफट सजा करवा दी जा रही है। शकील अहमद के आरोप कितने सच हैं इसका जवाब तो अपराध अनुसंधान में लगे पुलिस अधिकारी ही दे सकते हैं।ंकि यह कोई पहला मामला नहीं है जिसमें प्रभुनाथ सिंह बाइज्जत बरी हुए हैं। पुलिस सूत्रों की मानें तो इनका राजनीतिक सफर ही हत्या जैसे संगीन आरोपों से शुरू हुआ है। 1977 में जब वे पहली बार विधायक बने थे उस समय भी वे मशरख के कांग्रेसी विधायक रामदेव सिंह की हत्या के आरोपी थी। तब से लेकर अबतक इन पर तीन दर्जन से अधिक हत्या, लूट एवं अन्य अपराधों के आरोप लगे। फिर भी राजनीतिक पहुंच की बदौलत प्रभुनाथ बराबर कानूनी शिकंजे से बचते रहे।
टाल क्षेत्र के कुख्यात जदयू विधायक अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार के आपराधिक किस्से चर्चित रहे हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार अकेले मोकामा में ही उनपर हत्या, लूट व बलात्कार के दो दर्जन से अधिक मामले दर्ज हैं। तीन साल में पटना के कोतवाली थाने में ही पत्रकार को जान से मारने, जमीन हड़पने व रंगदारी के चार मामले दर्ज हुए हैं। बावजूद इसके अनंत singh पर हाथ डालने में पुलिस के पसीने छूट रहे हैं। इस बाबत राज्य पुलिस प्रवक्ता-सह-सहायक पुलिस महानिदेशक अनिल सिन्हा बताते हैं कि कानून अपना काम कर रहा है। समय आने पर अनंत सिंह भी कानून के शिकंजे में होंगे।
सूबे के देहाती इलाकों की कौन कहे, राजधानी पटना भी पूरी तरह से अपराधमुक्त नहीं हो पाया है। तीसरी वर्षगांठ के जश्न में डूबी सरकार को अपराधियों ने कड़ी चुनौती देते हुए 19 नवंबर को सुल्तानगंज थाने से महज 50 गज की दूरी पर दिनदहाड़े कांग्रेसी नेता यदुनंदन यादव को गोलियों से भून दिया। वहीं लुटेरों ने एनएमसीएच के पास पुलिस की मौजूदगी में ही एक दवा दुकान में जमकर लूटपाट की। इसके तीन दिन पहले राजधानी में ही बाटा शू कंपनी के कार्यकारी प्रबंधक को गोलियों से भून दिया गया।
स्पीडी ट्रायल के आंकड़ों के खेल में मशगूल नीतीश सरकार के तीन वर्ष के शासनकाल में ही करीब 2103 डकैतियां हुईं। 8474 निर्दोष नागरिक गोलियों के शिकार हुए। जिला मुख्यालयों समेत अन्य जगहों पर दिनदहाड़े लूट की 5034 व चोरी की 35693 घटनाएं हुईं। स्कूली छात्रों समेत 6487 लोग अपहृत हुए। सामंती जुर्म के लिए सदा से कुख्यात बिहार में नीतीश शासनकाल के दौरान 3005 मासूमों एवं अबलाओं की अस्मत लूटी गई। लूट व छिनतई की 3552 व बैंक लूट व डकैती की 66 घटनाएं हुईं। आजादी के बाद बैंक लूट की अबतक की सबसे बड़ी घटना राजधानी के कंकड़बाग इलाके में हुई जहां घोड़े पर सवार लुटेरों ने 50 लाख रुपये लूट लिये। राजेन्द्र नगर व पटना जंक्शन के बीच चलती ट्रेन में दिनदहाड़े पूर्व डीआईजी की हत्या गोली मारकर कर दी गयी। बोरिंग रोड में सेवानिवृत आइएएस को गोलियों से भून दिया गया। पाटलिपुत्रा इलाके में प्रो. पापिया घोष हत्याकांड की गूंज देशभर में सुनी गयी। प्रदेश में तीन दर्जन से अधिक मानवाधिकार उल्लंघन के मामले भी प्रकाश में आए। phir भी अपराधों का यह आंकड़ा लालू-राबड़ी शासनकाल से काफी कम है
पाक साफ कोई नही ना लालू ना नीतिश
डीजीपी डीपी ओझा बताते हैं कि हमाम में सारे राजनीतिक दल नंगे हैं। इनका दावा है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के अपराध हो ही नहीं सकते। पेश है बिहार की कानून-व्यवस्था पर संवाददाता श्याम सुन्दर के साथ हुई बातचीत के अंश
क्या सूबे में अपराधियों का मनोबल टूटा है?
हां, यह सही है कि प्रदेश में भयमुक्त समाज निर्माण की दिशा में सरकार के प्रयास दिखने शुरू हो गये हैं। फिर भी अपेक्षित परिणाम नहीं आए हैं। अपराधियों पर अंकुश लगाने में पुलिस बहुत हद तक सफल हुई है।
क्या पुलिस सत्ता के दबाव में भी काम करती है?
जब तक प्रशासनिक व पुलिस संगठन स्वायत्त नहीं होंगे तबतक राजनेताओं का हस्तक्षेप जारी रहेगा। जब मैं डीजीपी था, उस समय भी मैंने कहा था कि हमाम में सारे दल नंगे हैं। आज भी इस वाक्य पर मैं कायम हूं। अगर पुलिस का दबाव नहीं होता तो ऊं चे रसूख वाले सारे अपराधी, चाहे वे विधायक अथवा सांसद ही क्यों नहीं हों, नहीं बचते।
क्या सूबे में अभी भी सत्ता संरक्षित अपराधियों का बोलबाला है?
सीधे तौर पर तो नहीं कहा जा सकता। फिर भी पाक साफ न तो लालू प्रसाद हैं और न ही नीतीश कुमार व रामविलास पासवान। एक ओर जहां लालू को मो. शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली सांसद की जरूरत है तो वहीं नीतीश कुमार को प्रभुनाथ सिंह एवं मोकामा विधायक अनंत सिंह की वहीं रामविलास पासवान को भी सूरजभान व मुन्ना शुक्ला जैसे बाहुबली नेताओं की दरकार है। राष्ट्रवाद का राग अलापने वाली भाजपा भी कम नहीं है। उसे भी नित्यानंद राय सरीखे लोग चाहिए। इन लोगों के रहते भयमुक्त समाज की कल्पना बेमानी है।
इसके जनता की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दिख रही है?
जब राजनीति में अपराधियों का वर्चस्व बढ़ता है तब जनता असहाय हो जाती है। ऐसी स्थिति में जनता व सूबे की बेहतरी युवा ही सोच सकते हैं। युवाओं में अंगड़ाई शुरू हो गयी है। दो पीढ़ी आते-आते युवाओं की यही अंगड़ाई तूफान बनकर आएगी। नौजवान जागेगा, तो बदलाव अपने-आप आ जाएगा।
कैसा बदलाव आएगा?
यह एक बड़ा सवाल है। बदलाव वोट से आएगा या बंदूक से, फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह तय है कि तीन साल पहले नेपाली माओवादी नेता प्रचंड ने पशुपतिनाथ से तिरुपतिनाथ का जो नारा दिया था, उसका असर देश में भी दिखने लगा है।

Tuesday, November 11, 2008

...कहां गया हेलीकॉप्टर

रेड कोरिडोर बनाने का सपना देख रहे नक्सलियों ने पूरी तरह से छत्त्ाीसगढ़ को अपने कब्जे में ले रखा है। प्रदेश के बड़े इलाके में सुरक्षाकर्मी जाने से कतराते हैं। तभी तो बस्तर के आकाश से डेढ़ महीने पहले गायब हुआ रैन एयर (रैन बैक्सी गु्रप से संबद्ध) हेलीकॉप्टर को ढूंढ़ने में सुरक्षा बल पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है। उसमें पायलट, सहायक पायलट, एक-एक इंजीनियर व तकनीिश्ायन सवार थे।
छत्त्ाीसगढ़ सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ अबतक का सबसे बड़ा अभियान छेड़ रखा है। इसमें सीआरपीएफ, सीएएफ, एसटीएफ के साथ ही एसपीओ को मिलाकर 12,600 जवान लगाये गये हैं। उसकी टोह में राज्य सरकार ने किराये पर पांच हेलीकॉप्टर ले रखा है। पुलिस व वायु सेना के जवान हेलीकॉप्टरों से अबतक 150 किलोमीटर की उड़ानें भर चुके हैं। इस अभियान में चार एयर बस भी लगाये गये हैं। 30 थाना क्षेत्रों में रेड अलर्ट घोषित किया गया है। फिर भी अबतक नतीजा सिफर ही रहा है। इस बाबत पुलिस प्रमुख विश्व रंजन का कहना है कि बारिश व खराब माैसम की वजह से विजिविलिटी (नजर आने वाली दूरी) 20 फीट से अधिक नहीं है। इसी वजह से हेलीकॉप्टर ढूंढ़ने में सफलता नहीं मिल पा रही है।
हैदराबाद से जगदलपुर आ रहा रैन एयर हेलीकॉप्टर बेल-430 तीन अगस्त को 4.30 बजे उड़ान भरा था। बताया जाता है कि 16 नाटिकल माइल्स (60 किलोमीटर) उड़ान भरने के बाद उसका वायुयान मार्ग नियंत्रण (एटीसी) से संपर्क भंग हो गया। इसे जगदलपुर से इंर्धन लेकर छत्त्ाीसगढ़ के गृहमंत्री रामविचार नेताम को लेने अंबिकापुर जाना था।
इस अभियान में लगे सुरक्षाकर्मियों को आशंका है कि हेलीकॉप्टर आंध्रप्रदेश-छत्त्ाीसगढ़ की सीमा पर या इससे लगे बस्तर के जंगलों में नक्सलियों के पास पहुंच गया है। शायद इसीलिए तलाशी की जद्दोजहद उसी इलाके में चल रही है। यह इलाका जंगलों-पहाड़ों से घिरा है आैर संयोग से नक्सलियों की गिरफ्त में है। हालांकि रिमोट सेंसिंग उपकरण ने संभावित जिन दो स्थलों को चिह्नित किया है उनमें से एक पर नक्सलियों के स्मारक मिले हैं जबकि दूसरी जगह पर ट्रैक्टर व पुलिस की जेसीबी। पुलिस महानिदेशक का कहना है कि हेलीकॉप्टर उड़ान भ्ारने के समय से ही नार्मल फ्लाइट पाथ यानी खम्मम, भद्राचलम आैर कोंटा होकर उड़ा ही नहीं। पायलट ने जंगलों, पहाड़ों वाला सीधा रास्ता अपनाया। उधर, मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने पुलिस अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है आैर हेलीकॉप्टर को ढूंढ़ने में दुनिया की सबसे उच्च्ास्तरीय तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया है।
18,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में छेड़े गये अभियान की सफलता सिर्फ इतनी ही है कि यह क्षेत्र सिकुड़कर 8,000 वर्ग किलोमीटर रह गया है। इस दाैरान नक्सलियों के साथ सुरक्षाकर्मियों का छह-सात बार मुठभेड़ हो चुकी है। दर्जनभर पुलिसकर्मियों ने शहादत भी दी है। 5 सितंबर को सुबह करीब 10.30 बजे छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में नक्सलियों के साथ पुलिस की मुठभेड़ हुई जिसमें तीन सीआरपीएफ व दो जिला पुलिस के जवान शहीद हो गये। इसका नेतृत्व बलरामपुर एसपी स्वयं कर रहे थे। पुलिस को इस बात की जानकारी मिली थी कि झारखंड सीमा से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर सामरी इलाके में नक्सलियों का कैंप चल रहा है उसमें करीब सौ नक्सली मौजूद हैं।
दूसरी ओर, गायब हुआ हेलीकॉप्टर नक्सलियों के कब्जे में ही है, ऐसा दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता। फिर भी हेलीकॉप्टर समेत गायब पायलट व अन्य चार लोगों को ढूंढ़ने की विनती उनके परिजनों ने नक्सलियों से की है। हेलीकॉप्टर में पायलट बीपी सिंह, सहायक पायलट कैप्टन आरके गाैर, इंजीनियर संतोष सिंह व तकनीिश्ायन अिश्वनी कुमार सवार थे।
उनके परिजनों ने नक्सलियों से मार्मिक अपील करते हुए निवेदन किया है कि उन लोगों से चार परिवारों का रोजी-रोटी जुड़ा हुआ है। इसलिए इंसानियत का ख्याल रखते हुए इस असमंजस की िस्थति से उबारने का प्रयास किया जाय। परिजनों का कहना है कि पुलिस दुर्गम जंगली इलाकोंं में नक्सलियों के डर से जाने से कतरा रही है।
नक्सलियों के खिलाफ अबतक का सबसे बड़ा अभियान
क्षेत्रफल-18,000 वर्ग किलोमीटर
जवान-12,600
कुल उड़ानें-100 घंटे
इस्तेमाल हेलीकॉप्टर-पांच (एयर फोर्स समेत)
इस्तेमाल एयर बस-चार
थाने अलर्ट-30

पहले बाढ़, अब सुखाड़/प्रकृति की दोहरी मार

एक ओर बाढ़ तो दूसरी ओर सुखाड़। बिहार के लोग कोसी की विभीषिका से अभी जूझ ही रहे थे कि राज्य का अधिकांश इलाका सूखे की चपेट में आ गया। लाखों हेक्टेयर में लगी धान की फसल सूख रही है। खरीफ फसल भी बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है। सूबे में यह स्थिति सितंबर महीने में सामान्य से 43 फीसदी कम बारिश होने की वजह से उत्पन्न हुई है।
प्रदेश में 15 वृहद व 78 मध्यम नहर सिंचाई योजनाएं हैं। इनमें औरंगाबाद में 12, भागलपुर में 31, डेहरी में 4 व पटना जिले में 30 मध्यम योजनाएं हैं। अगर इन योजनाओं को ही सुचारू तरीके से चलाया जाए तो बहुत हद तक प्रदेश को सूखे से बचाया जा सकता था लेकिन इनका सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। मौसम की बेरुखी सेे पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। हालांकि नीतीश सरकार के अस्तित्व में आते ही सूबे की तकदीर बदलने के लिए एक सार्थक प्रयास की शुरुआत की गयी थी लेकिन कोसी इलाके की बाढ़ व शेष इलाके में सुखाड़ ने सरकार के सारे प्रयासों को विफल कर दिया है। सूखे के कहर से प्रदेश के अधिकांश किसान त्राहिमाम कर रहे हैं।
बात चाहे सोन उच्चस्तरीय नहर के किनारे बसे औरंगाबाद जिले के ओबरा, दाउदनगर, अरवल व पटना के देहाती इलाके की हो या फिर उत्तरी कोयल सिंचाई परियोजना से सिंचित होने वाले औरंगाबाद, रफीगंज, नबीनगर, मदनपुर, बारूण (2 पंचायत), गुरूआ, गुरारू व टिकारी की। हर जगह पानी के लिए हाहाकर मचा हुआ है। "चावल का कटोरा' कहा जाने वाले कैमूर, भभुआ, भोजपुर व बक्सर के इलाके भी इससे अछूते नहीं रहे। धान की लहलहाती फसलें अंतिम पटवन के अभाव में मर रही हैं। कमोबेश यही स्थिति उत्तरी बिहार की गंडक परियोजना से लाभांवित होने वाले पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सारण, सीवान, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी व समस्तीपुर जिलों की भी है।
हालात ऐसे हैं कि जहानाबाद जिले के कुर्था,करपी, कांको, मखदुमपुर, कैमूर जिले के अधौरा, अरवल जिले के बैदराबाद, कलेर के निचले इलाके, जहानाबाद से सटे औरंगाबाद जिले के देवकुंड के साथ ही गोह के दक्षिणी इलाके, हमीदनगर पुनपुन बराज परियोजना के आसपास बसे गांव के साथ ही बक्सर जिले के चौसा इलाके के दर्जनों गांवों में पानी के लिए हिंसक झपड़ें तक हो चुकी हैं। किसानों के गुस्से का शिकार सासाराम में दो दिवसीय दौरे पर आईं केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री मीरा कुमार को होना पड़ा। आलमगंज की सभा में किसानों ने करमचट सिंचाई परियोजना को लेकर जमकर हंगामा किया।
गोह प्रखंड की झिकटिया पंचायत के पूर्व मुखिया नंदलाल सिंह बताते हैं कि अंतिम पटवन नहीं होने की वजह से धान की लहलहाती फसल मारी गयी। उन्होंने बताया कि गोह व रफीगंज इलाके में उत्तरी कोयल व टिकारी माइनर के आसपास के दर्जनों गांवों में भीषण सुखाड़ हो गया है। अगर दशहरा तक बारिश नहीं हुई तो इस इलाके में रबी फसल की भी बुवाई नहीं हो सकेगी, क्योंकि खेतों में दरारें पड़ गयी हैं। बारिश नहीं होने की वजह से धान के उत्पादन में कितना अंतर आएगा, इस संबंध में जब हमने कृषि निदेशक बी. राजेन्द्र सेजानने की कोशिश की तो उन्होंने कुछ भी स्पष्ट कहने से इंकार कर दिया।
पूर्व जल संसाधन मंत्री जगदानंद सिंह का कहना है कि शुरू में अच्छी बारिश हुई जिससे धान की अच्छी उपज होने की उम्मीद थी लेकिन सितंबर के शुरू से ही बारिश ने धोखा दे दिया। वहीं दोषपूर्ण जल बंटवारे की वजह से सोन नहर से सिंचित होने वाले इलाकोें में भी सिर्फ एक पटवन के लिए धान की फसल मारी गयी।
नीतीश सरकार जुलाई महीने में ही कर रही थी कि अतिवृष्टि की वजह से राजधानी पटना डूबा है। अगर उन दिनों वाकई सरकार का यह बयान सही था तो फिर सितंबर आते ही आखिर कैसे अधिकांश सिंचाई योजनाओं में पानी की किल्लत हो गयी? किसानों का कहना है कि अगस्त के अंतिम दिनों से ही तीखी धूप होने की वजह से खेतों में पानी की जरूरत महसूस की जाने लगी थी। सितंबर के अंत तक इसने भयावह रूप ले लिया। राज्य सिंचाई कोषांग के निदेशक दिनेश कुमार चौधरी ने बताया कि अंतिम पटवन के अभाव में धान की फसलों को मरने नहीं दिया जाएगा। पानी के लिए मचे हाहाकार को देखते हुए ही सरकार उत्तर प्रदेश की रिहन्द सागर व मध्य प्रदेश की बांध सागर परियोजनाओं से प्रतिदिन 14275 क्यूसेक पानी खरीद रही है। यही पानी पश्चिमी सोन नहर में 9798 क्यूसेक व पूर्वी सोन नहर में 4477 क्यूसेक प्रतिदिन छोड़ा जा रहा है। जबकि गंडक परियोजना के मुख्य कैनाल में प्रतिदिन 12,000 क्यूसेक व पूर्वी कैनाल में 5700 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। इससे उत्तर प्रदेश के भी कुछ हिस्सों में सिंचाई हो रही है।
सरकार के यह दावे अगर सही हैं तो फिर आखिर किन परिस्थितियों में सरकार ने सूबे के सभी हिस्सों के किसानों को अनुदान पर डीजल देने का ऐलान किया है। प्रधान सचिव विजय शंकर का कहना है कि 20 सितंबर को ही पानी के लिए मचे हाहाकार के मद्देनजर सरकार ने 63 करोड़, 16 लाख, 50 हजार रुपये जारी किये हैं। हालांकि जमीनी सच्चाई यह है कि घोषणा के 15 दिनों के बाद भी अबतक जिलाधिकारी को कोई आदेश नहीं मिले हैं। सवाल यह है कि इस अनुदान का लाभ किसानों को कब मिलेगा? नाम नहीं छापने की शर्त पर एक जिलाधिकारी ने बताया कि घोषणाएं पटना में हुई हैं। घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने में महीनों लग सकते हैं।
प्रदेश में लघु सिंचाई योजनाएं भी कागजों पर ही दिखती हैं। अकेले बक्सर जिले में ही लगभग 120 पंपिंग सेट हैं लेकिन उनमें से अधिकांश बंद पड़े हैं। 15 पंपिंग सेट ठीक हालत में हैं भी तो खपत के अनुसार बिजली की आपूर्ति नहीं होने की वजह से ये पंप क्षमता के अनुसार पानी नहीं दे पा रहे हैं। स्थानीय बसपा विधायक हृदय नारायण सिंह बताते हैं कि पिछली राजद सरकार ने इलाके में सिंचाई की समस्या को दूर करने के लिए गंगा-चौसा पंप लाइन का निर्माण करवाया था लेकिन तीखी धूप के बावजूद सरकार जिले में औसत बिजली की आपूर्ति 32 के बजाय 15 मेगावाट कर रही है। इस वजह से सौ क्यूसेक पानी की क्षमता वाली यह परियोजना भी किसानों का साथ नहीं दे रही है। अधौरा प्रखंड में कर्मनाशा नदी पर बना पंप हाउस भी जंग खा रहा है। इससे लाभान्वित होेने वाले हजारों एकड़ जमीन में लगी फसल जल रही है। इधर 30 सितंबर को हुई बारिश से किसानों के चेहरे खिले दिख रहे हैं।
स्थिति की नजाकत इसी से समझी जा सकती है कि पानी बंटवारे को लेकर सूबे में पहली बार दो राज्यों के बीच विवाद खड़ा हो गया। औरंगाबाद के भाजपा विधायक रामाधार सिंह ने प्रदेश की 26 हजार हेक्टेयर जमीन में लगी धान की फसल को बचाने के लिए झारखंड प्रदेश के कुटकू बांध के समीप उत्तरी कोयल के मुख्य द्वार को ही काट दिया। इस संबंध में उन्होंने बताया कि वर्ष 2006 में हुए समझौते के अनुसार बिहार को 2500 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए था लेकिन समझौते का उल्लंघन करते हुए झारखंड सरकार मात्र 1700 क्यूसेक पानी छोड़ रही थी जबकि उत्तरी कोयल को बिहार के एक लाख हेक्टेयर में सिंचाई करनी है।
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पानी से बिजली पर छिड़ी जंग
सूखे की चपेट में आए किसानों के दुख-दर्द को दूर करने के लिए पक्ष-विपक्ष के नेताओं में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। पानी की किल्लत का ठीकरा विपक्षी नेताओं ने बिजली विभाग पर फोड़ना शुरू कर दिया है। राजद नेता व पूर्व जल संसाधन मंत्री जगदानंद सिंह ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि अतिवृष्टि के बावजूद सितंबर महीने में ही सारे नदी-नाले सूख गये। जिन इलाकांें के किसान पंपिंग सेट से खेतों में सिंचाई करते थे वहां बिजली नहीं देकर सरकार दूसरे राज्यों को बेच रही है। उनका कहना है कि वैसे तो अधिकांश बिहार पहले से ही अंधेरे में डूबा हुआ है लेकिन जहां बिजली है वहां भी सरकार देने में सक्षम नहीं है। केंद्रीय पुल की बिजली में से 300 मेगावाट प्रतिदिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा समेत अन्य दूसरे राज्यों को बेची जा रही है। दूसरी ओर, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह का कहना है कि केन्द्र सरकार बिहार के कोटे के अनुसार भी बिजली नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि औसतन बिजली का आवंटन सूबे में करीब 1400 मेगावाट है जबकि यहां मिल रही है मात्र एक हजार मेगावाट। पक्ष-विपक्ष के आरोप के बीच सच्चाई चाहे जो भी हो इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि सूबे के अधिकांश इलाकों में औसतन बिजली प्रतिदिन पांच से छह घंटे ही मिल रही है।
बॉक्स
वृहद सिंचाई योजनाएं लाभांवित जिले
सोन उच्चस्तरीय नहर------भोजपुर, रोहतास, पटना, जहानाबाद, गया, औरंगाबाद
बदुआ जलाशय योजना----भागलपुर, मुंगेर
चंदन जलाशय योजना---भागलपुर
मोरहर सिंचाई योजना---गया
किउल जलाशय योजना---मुंगेर
कोसी योजना----पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, मधेपुरा, किशनगंज, सुपौल, अररिया
कुहिरा बांध-----कैमूर
मुसाखांड सिंचाई योजना---कैमूर
गंडक योजना-पूर्वी व पश्चिमी चंपारण, सारण, सीवान, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर
लिलाजन सिंचाई योजना---गया
सकरी सिंचाई योजना---गया, नवादा
उदेरास्थान सिंचाई योजना---जहानाबाद, गया, नवादा
अपर मोरहर सिंचाई योजना--गया, नवादा
कमला, बलान, त्रिशुला सिंचाई योजना---मधुबनी

क्यों जल रहा है बिहार?

नालंदा के जगदीश प्रसाद का परिवार स्तब्ध, माैन आइर शोकसंतप्त है। ये वही जगदीश हैं, जिनकी इकलाैती संतान पवन उर्फ दीपू (24) को बेवजह आैर असमय नफरत की राजनीति की बलि वेदी पर चढ़ा दिया गया। जगदीश आैर उनके ही जैसे लाखों परिवारों को पता नहीं कि पेट की आग बुझाने के लिए दूसरे राज्यों की खाक छानने को कब गुनाह का दर्जा दिया गया। लेकिन, महाराष्ट्र में भड़की आग की लपट जिस तरह बिहार पहुंची, उसने यह बता दिया कि सिसायतदानों के मन में क्या है। पवन जैसे मासूमों की लाश की चाबी ही सत्त्ाा के द्वार खोलती है। हाल के वर्षों में सबसे सफल प्रयोग भाजपा की राम लहर थी, जिसने अन्य दलों को भी नकारात्मक राजनीति की दिशा दिखाई।
महाराष्ट्र से लेकर बिहार आैर यूपी तक राजनेताओं को इस उबलते मुद्दे के बीच इंतजार रहेगा, तो बस आम चुनाव का। इस पूरे प्रकरण की जिस तरह राजनीतिक साैदेबाज़ी होती दिखी, उसने यह संकेत दे दिया है कि बिहार आैर महाराष्ट्र में होनेवाले आम चुनाव में बाहरी-भीतरी का मुद्दा काफी अहम भूमिका अदा करेगा।
बिहार में राजद के लिए अभी एक चुनाैती यह है कि वह सत्त्ाा में नहीं। उसे चुनाव सिर्फ मुद्दों के आधार पर लड़ना है। चूंकि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार है, इसलिए वह राज ठाकरे का ठीकरा राजग के बहाने नीतीश पर फोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। यद्यपि, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद सीधे ताैर पर अपने राजनीतिक विरोधियों पर निशाना नहीं साध रहे, लेकिन उनकी पार्टी के श्याम रजक सरीखे नेता वार का एक भी माैका चूक नहीं रहे।
यही वजह है कि जब राज की गिरफ्तारी हुई, तो श्याम रजक ने कहा-"ऐसे लोगों के खिलाफ मारपीट का नहीं बल्कि देशद्राेह का भी मुकदमा चलना चाहिए।' वहीं दूसरी ओर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने भी कांग्रेस पर निशाना साधने का मौका हाथ से नहीं जाने दिया। पार्टी प्रवक्ता विजय कुमार चौधरी ने कहा-" राज को गिरफ्तार करने में महाराष्ट्र सरकार ने देरी कर दी वरना बिहार के युवकों की पिटाई नहीं होती।'
नेतृत्वविहीन छात्रों का उग्र प्रदर्शन आगामी लोकसभा चुनाव में कुछ नया गुल खिलाएगा, यह अभी कहना मुिश्कल है। लेकिन जिस तरह पहली बार छात्रों की गोलबंदी हुई है, उससे 1974 के आंदोलन की उपज रेल मंत्री लालू प्रसाद से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत अन्य नेताओं के सामने एक चुनाैती खड़ी हो गयी है।
राज्य प्रशासन छात्रों के उग्र तेवर भांप चुका था, लेकिन इसे राजनीतिक मजबूरी ही कहेंगे, जिसके चलते हिंसा का जवाब कठोरता से नहीं दिया गया। यह उसी तरह का मामला है, जैसा राज ठाकरे के साथ आज तक महाराष्ट्र में होता आया है। फरवरी 2008 में राज ठाकरे के भड़काऊ भाषणों से वैमनस्यता फैली थी, जिसके शिकार बिहार आैर यूपी के कई मासूम हुए थे। उस समय भी महाराष्ट्र सरकार की थू-थू हुई थी, लेकिन मराठी जनमानस की उपेक्षा से जो राजनीतिक नुकसान हो सकता है, उसकी शायद विलासराव देशमुख को अच्छी तरह से समझ है। यही वजह रही होगी कि उनकी सरकार ने उस समय राज पर इतना हल्का मुकदमा ठोंका कि उन्हें जेल से बाहर आने में सिर्फ दो घंटे आैर 15 हजार के मुचलके ज़ाया करने पड़े। अगस्त 2008 में भी एमएनएस कार्यकर्ताओं ने मराठी में दुकानों के नाम लिखने की हिदायत दी आैर तय समय से पहले ही व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर हमले बोल दिये। लाखों की संपित्त्ा का नुकसान हुआ। इस मामले में राज्य सरकार ने सिर्फ एक मामूली किस्म की जांच का आदेश दे दिया। जब व्यापारी हाइकोर्ट गये, तो वहां से सरकार को कड़े कदम उठाने के निर्देश मिले, पर अचरज की बात यह है कि कुछ ही दिनों के बाद कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार ने एक शपथपत्र दायर कर यह बताया कि मनसे नेताओं का कोई कुसूर नहीं है। कुछ ऐसा ही इस बार भी हुआ। गिरफ्तारी आैर रिहाई के नाटक के बीच, जो कुछ हुआ उसे देश भर के करोड़ों लोगों ने टीवी पर देखा। आम आदमी के मन में एक आम धारणा यह ज़रूर बनी कि सत्य जितना जिखता है, उतना स्पष्ट नहीं होता। वैसे बिहार में भी उग्र आंदोलन के ज़रिए, जिस प्रकार एक-दूसरे पर निशाना साधा जा रहा है, वह समस्या के समाधान से ़़ज्यादा सियासी फायदा झपटने की तरकीब नज़र आ रहा है।
दूसरी ओर मुद्दे के चुनाव तक जिंदा रहने के भी कई प्रमाण मिल रहे हैं। मसलन, 23 अक्टूबर को हुई छात्रों की आपात बैठक में महाराष्ट्र के सारे उत्पादों के बहिष्कार का निर्णय लिया गया। छात्रों ने सभी दलों के नेताओं को कड़ी चेतावनी दी कि अगर इस बार नेता चुप रहते हैं तो वे आगामी लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे। छात्रों ने जिस तरह से रेलवे को क्षति पहुंंचायी है उसे देख राजद प्रमुख व रेल मंत्री लालू प्रसाद खासे दबाव में दिख रहे हैं। उन्होंने भी दबी जबान ही सही, पर इस प्रतिहिंसा का सारा दोष राज्य सरकार पर मढ़ दिया है। लेकिन प्रदेश के राजग नेता इसे आक्रोश की अभिव्यिक्त मान रहे हैं। क्योंकि इसके पहले भी चार बार हिन्दी भाषियों के नाम पर बिहारी छात्र महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के शिकार बने हैं। लाख टके का सवाल यह है कि आखिर हिन्दीभाषी के नाम पर बिहारियों को ही निशाना क्यों बनाया जाता है? आैर, अगर यूपी भी हिंदीभाषी प्रदेश है, तो वहां के नेता इस बर्बरता पर माैन क्यों रहे। जाहिर सी बात है, मायावती आैर मुलायम की महत्वाकांक्षा अब यूपी से बाहर निकल कर केंद्र तक पहुंच गयी है। ऐसी िस्थति में किसी एक प्रदेश की राजनीति के लिए मुद्दों को हथियाने की तीर गलत निशाने पर भी लग सकती है। यही वजह है कि आज बिहार अपने जख़्म खुद सी रहा है। कब तक सीना पड़ेगा, यह अनििश्र्चत है।