Monday, September 29, 2008

सशंकित उद्यमी : पूंजी निवेश की धीमी रफ्तार
भूषण स्टील कंपनी के कर्मचारियों के साथ हुई बदसलूकी ने राज्य के औद्योगिक विकास की संभावनाओं पर नये सिरे से सवाल खड़े कर दिये हैं। अब उद्योगपति सरकारी मंशा को भांपने में लगे हैं।
पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में इंडोनेशिया के रासायनिक कंपनी सलीम गु्रप के खिलाफ महासंग्राम, इसी राज्य में टाटा के लिए गहरी समस्या बन चुका सिंगूूूूूूूूूूूूूूूूर, उड़ीसा में पोस्को के खिलाफ अवाम का प्रदर्शन और अब झारखंड में एक स्टील कंपनी के कर्मचारियों के साथ बदसलूकी...। अगली पंक्ति में कौन होगा फिलहाल कहना मुश्किल है। अंतर सिर्फ इतना है कि दूसरे राज्यों में आधारभूत संरचनाएं झारखंड के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं। झारखंड गठन के बाद से राज्य औद्योगिक विकास के लिए सिर्फ तैयारियों में ही जुटा है। इस स्थिति में औद्योगिक समूह के कर्मचारियों के साथ पुलिस और प्रशासन की उपस्थिति में दुर्व्यहार इसके रास्ते में रोड़े अटका रही है। बीते दिनों जमशेदुपर के पोटका प्रखंड के ग्रामीणों ने पुलिस-प्रशासन की मौजूदगी में भूषण स्टील कंपनी के लिए काम कर रहे द सर्वेयर एंड एलायड इंजीनियरिंग कंपनी के कर्मचारियों के साथ जिस तरह का सलूक किया उससे सरकार की मंशा साफ हो जाती है।
देसी-विदेशी कंपनियों के लिए देश में कोई प्रोजेक्ट शुरू करना एवरेस्ट की चढ़ाई के समान है। हर जगह मुद्दा जमीन अधिग्रहण का है। कई कंपनियां ने तो अपनी परियोजनाओं से हाथ भी खींच लिया है। आखिर इसके लिए जिम्मेवार कौन है? और गलतियां किससे हो रही हैं...। कंपनियों से या फिर अदूरदर्शी सरकारों से? या फिर उद्योग स्थापना के नाम पर सिर्फ सस्ते दर पर जमीन लेने की एक नई प्रथा चल पड़ी है, जिसमें लोग उद्योग लगाते तो नहीं अलबत्ता इसी बहाने पानी के भाव जमीन हासिल कर लेते हैं।
रांची से करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पोटका प्रखंड। इसी प्रखंड के सरमंदा व रोलाडीह गांव में भूषण स्टील कंपनी के लिए काम करने गये द सर्वेयर एंड एलायड इंजीनियरिंग कंपनी के तीन कर्मचारियों, युसूफ अहमद, सहदेव सिंह व शीतल कुमार भारद्वाज को पहले ग्रामीणों ने बंधक बनाया। उसके बाद स्थानीय झामुमो विधायक अमूल्य सरदार के समर्थकों ने उन्हें जूते का हार पहनाकर करीब चार किलोमीटर तक तपती धूप मेंं घुमाया। नंगे पाव दहशत में घूम रहे कर्मचारियों के पैरों में छाले पड़ गये। वहीं एक-दूसरे के गालों पर थप्पड़ भी मारे गये। फिर कभी इस इलाके में नहीं आने की कसम खिलवायी। तब जाकर सर्वेयरों की जान बख्शी गयी।
इधर, घटना के विरोध में निवेशक बौखला गये। राजधानी रांची में विरोध प्रदर्शन का दौर शुरू हुआ। मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा। तब जाकर मामला शांत हुआ। हालांकि अभी भी निवेशकों में भय व्याप्त है। घटना के विरोध में भूषण स्टील कंपनी समेत अन्य नये उद्यमियों ने फिलहाल काम ठप कर दिया है।
यह पहला मौका नहीं है जब उद्योगपतियों को इस तरह की बेइज्जती का सामना करना पड़ा हो। इसके पहले भी सूबे की ओर आकर्षित होने वाले निवेशकों को सरकार की ओर से परेशानियां उठानी पड़ी हैं। यही कारण है कि खनिज संपदाओं से भरपूर होने के बावजूद सूबे में अबतक बड़े निवेशकों में से एक कोहिनूर स्टील कंपनी (चांडिल) को ही धरातल पर उतारने में सरकार कामयाब हो पाई है। हालांकि गत वर्ष इस कंपनी के कर्मचारियों को भी केंदरा के समीप पीटा गया था।
भूषण स्टील कंपनी व सरकार के बीच वर्ष 2006 में ही एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुआ था। दोनों के बीच इस बात पर सहमति बनी थी कि कंपनी के लिए 70 फीसदी जमीन का इंतजाम सरकार करेगी। अन्य जमीन कंपनी स्वयं ही किसानों से खरीदेगी। इसी जमीन अधिग्रहण के सिलसिले में सर्वेक्षकों की टीम वहां गयी थी। कंपनी का इरादा सूबे में 10,500 करोड़ रुपये निवेश करने की है। इनमें तीन स्टील प्लांट व एक मेगा पावर प्लांट होंगे। कंपनी को अपने स्टील प्लांट के लिए 3,400 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करना है। लेकिन अब तक मात्र सौ एकड़ जमीन का ही अधिग्रहण हो पाया है। कंपनी ने वर्ष 2010 तक उत्पादन का लक्ष्य भी रखा है। ऐसी स्थिति में एक सवाल यह भी उठता है कि क्या कंपनी अपने निर्धारित समय से अपना लक्ष्य पूरा कर पाएगी? उद्योग मंत्री सुधीर महतो बताते हैं कि प्रदेश में उद्यमियों को पूरी सुरक्षा दी जाएगी। उनका कहना है कि भूषण कंपनी के सर्वेक्षकों को पहले स्थानीय प्रशासन को सूचना देनी चाहिए थी। तब मौके पर जाना चाहिए था। लेकिन उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि दो थानों की पुलिस व प्रशासन की मौजूदगी में ही सारी वारदातें क्यों हुई? वह कहते हैं कि यह सारा नाटक सरकार को बदनाम करने की साजिश है। हालांकि इस मामले में सौ लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है लेकिन अबतक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। इस बाबत पूछने पर स्थानीय विधायक का कहना है कि भूषण कंपनी के कर्मचारियों के साथ सिर्फ धक्का-मुक्की हुई है।
लाख टके का सवाल यह है कि आखिर खनिज संपदाओं से भरपूर होने के बावजूद सूबे की ओर उद्यमी क्यों नहीं आकर्षित हो रहे हैं? जबकि निवेशकों को आकर्षित करने के लिए ही पिछली मधु कोड़ा सरकार ने नयी पुनर्वास नीति की घोषणा भी की थी। जिसमें एक बात पर जोर दिया गया था कि निवेशक सीधे किसानों के पास जाकर जमीन का मोल-भाव करेंगे और उन्हें उचित मुआवजा देंगे। नीति के अनुसार रोजगार में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी। वहीं कंपनियां ही स्थानीय गांवों के विकास की चिंता भी करेंगी। किसान भी स्वेच्छा से ही जमीन देंगेे। लेकिन हाल के दिनों में भूषण स्टील कंपनी व उसके दो दिनों केे बाद ही जूपीटर स्टील कंपनी के कर्मचारियों के साथ जो सलूक किया गया, उससे साफ हो जाता है कि सरकार की नीति व नीयत में कितनी खोट है। भूषण कंपनी के निदेशक एचसी वर्मा बताते हैं कि कंपनी के कर्मचारियों के साथ बदसलूकी राजनीतिक संरक्षण में हुआ है। यह वही कंपनी है जिसका स्टील प्लांट चंडीगढ़, डेराबस्ती, कोलकाता व उड़ीसा में स्थापित हो चुके हैं।
एक समय ऐसा भी था जब दुनिया के उद्योगपति संयुक्त बिहार के दक्षिणी हिस्से यानी आज के झारखंड में निवेश करने को लालायित रहते थे। आजादी के पहले से ही दुनिया भर के कोयला, लोहा, बाक्साइड, अबरख, लाह समेत अन्य उद्योगों से जुड़े हुए निवेशकों ने यहां पूंजी लगायी लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि पुराने निवेशक भी यहां से कहीं दूसरी जगह स्थानांतरित होना चाहते हैं।
फिलहाल उद्यमी सरकार के मूड भांपने में लगे हैं। सूबे में 50 परियोजनाएं सरकार की नीतियों का इंतजार कर रही हैं। कोई 93 उद्यमी सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर करने के बावजूद आनन-फानन में पूंजी फंसाने की फिराक में नहीं हैं। इनमें टाटा, अर्सेलर-मित्तल, जेएसडब्ल्यू, जिंदल, एस्सार स्टील कंपनी आदि हैं।
वैसे तो सरकार का दावा है कि प्रदेश के निर्माण के साथ ही निवेशकों की लंबी लाइन लग चुकी है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि चांडिल स्थित कोहिनूर स्टील कंपनी ने ही सहमति-पत्र के अनुसार 300 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश किया है। इनका सहमति-पत्र पर समझौता 35,000 करोड़ रुपये का हुआ है। अन्य निवेशकों का काम सिर्फ कागजों पर ही चल रहा है। वहीं समझौते के अनुसार सरकार विभिन्न परियोजनाओं के लिए 109225.7 एकड़ देने का समझौता कर चुकी है। अब सवाल यह है कि सरकार किसानों की इस जमीन को उद्योगपतियों के लिए कैसे मुहैया कराएगी?
प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर इस प्रदेश में कोई स्पष्ट औद्योगिक नीति नहीं बनी है। वर्तमान औद्योगिक नीति की समय-सीमा वर्ष 2005 में ही खत्म हो चुकी है। नयी नीति कैसी होगी और कब लागू होगी? फिलहाल सरकार का ध्यान इस ओर नहीं दिख रहा है। नयी पुनर्वास व राहत नीति को अगर छोड़ दिया जाए तो निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की अन्य कोई नीतियां नहीं दिख रही हैं। दूसरी बड़ी समस्या कानून-व्यवस्था की है। सूबे में नक्सलियों का आतंक जिस कदर बढ़ रहा है उससे निवेशकों में भय व्याप्त है। इसके लिए जरूरत है भयमुक्त समाज निर्माण की। लेकिन सरकार दिनों-दिन नक्सलियों के साथ ही भू-माफियाओं व बिचौलियों से घिरती जा रही है।
झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष मनोज नरेडी बताते हैं कि प्रदेश के अधिकांश इलाके नक्सलियों की चपेट में हैं। उनके डर से प्रशासन भी सहमी रहती है फिर बाहर से आने वाले निवेशकों की क्या बिसात कि वे नक्सलियों से टक्कर लेकर अपना उद्योग लगाएं? कानून-व्यवस्था की बाबत पूछे जाने पर उन्होंने दावे के साथ कहा कि कुछ जनप्रतिनिधि नक्सलियों के सहयोग से ही विधानसभा पहुंचते हैं। यही कारण है कि सरकार नक्सलियों के सफाये के लिए कोई कारगार नीति नहीं बना पा रही है।
नया राज्य बनते ही सूबे में भू-माफियाओं की सक्रियता भी उद्यमियों के मनोबल को तोड़ रही है। हालात ऐसे हो गये हैं कि बिना बिचौलियों के निवेशक जमीन का अधिग्रहण कर ही नहीं सकते। बिचौलियों के सहयोग से अगर भूषण कंपनी के सर्वेक्षक वहां जाते तो शायद यह घटना नहीं घटती।
बिजली की किल्लत भी देसी-विदेशी उद्योगपतियों को आकर्षित करने में व्यवधान पैदा कर रही है। फिलहाल प्रदेश की बिजली की जरूरत का अधिकांश हिस्सा सेंट्रल पुल से खरीदा जा रहा है। वैसे झारखंड अपने कोटे की पूरी बिजली भी लेने की स्थिति में नहीं है। राज्य के तीन बिजली उत्पादन संयंत्रों से औसतन चार सौ मेगावाट बिजली ही तैयार होती है। जबकि यहां 3600 मेगावाट बिजली क्षमता की जरूरत है। कई अन्य कंपनियां भी प्रदेश में पूंजी लगाना चाहती हैं। समझौते के अनुसार अगर वे सभी यहां निवेश करने लगे तो उस स्थिति में सूबे में करीब 5000 मेगावाट बिजली की जरूरत होगी। इसके लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं दिख रही है। कहने के लिए सूबे में तेनुघाट व पतरातु पनबिजली परियोजनाएं काम कर रही हैं लेकिन सच्चाई यह है कि वहां क्षमता से काफी कम बिजली का उत्पादन हो रहा है। सरकार की इच्छाशक्ति सूबे का विकास करने की है तो सरकार को ऊ र्जा संयंत्रों के निर्माण पर जोर देना चाहिए। सिर्फ जिंदल कंपनी ही 15-20 पावर प्लांट लगाने की मंशा जाहिर कर चुकी है। अब यह सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है कि यहां जिंदल की पावर प्लांट योजना कैसे सफल होगा।
यही नहीं, प्रदेश की राजनीतिक अस्थिरता भी निवेशकों को हतोत्साहित कर रही है। सूबे में मात्र आठ साल में ही पांच मुख्यमंत्री आए और गये। कोई एक साल के लिए बना तो कोई तीन साल के लिए। किसी के एजेंडे में हिन्दुत्व रहा तो किसी को केंद्र सरकार की कृपा से कुर्सी मिली। कोई नक्सलवाद को असली समस्या मानते रहे। किसी मुख्यमंत्री की इच्छा निवेशकों को आकर्षित करने की रही भी तो उनके सामने कानून-व्यवस्था समेत अन्य नीतियों का अभाव दिखा। वैसे तो शिबू सोरेन इसके पहले भी नौ दिनों (2 मार्च से लेकर 10 मार्च, 2005 तक) के लिए प्रदेश की सत्ता संभाल चुके हैं। इस बार वे प्रदेश के छठें मुख्यमंत्री के रूप में सत्तासीन हुए हैं। झारखंडी अस्मिता के लिए सदा संघर्षशील रहे सोरेने के सत्ता में आते ही भूषण स्टील व जूपीटर स्टील कंपनी के कर्मचारियों के साथ हुई बदसलूकी इस बात का गवाह है कि झारखंडी मिट्टी को समझने वाले शिबू सोरेन भी अन्य मुख्यमंत्रियों से अलग नहीं हैं। हालांकि भूषण कंपनी के अधिकारियों के साथ आयोजित बैठक में उन्होंने इस बात का भरोसा दिलाया है कि आगे से निवेशकों के हितों का भरपूर ध्यान रखा जाएगा। अब आगे देखना है कि मुख्यमंत्री की बातों में कितना दम है।
पुनर्वास नीति की विशेषताएं
जिस परिवार की जमीन किसी परियोजना के लिए अधिगृहीत की जाएगी। उस परिवार के सदस्यों को नौकरी में प्राथमिकता दी जाएगी।
प्रभावित परिवार के सदस्यों को नौकरी में 10 साल की छूट दी जाएगी।
नौकरी के अलावा कंपनी अपने लाभांश का एक फीसदी हिस्सा प्रभावित ग्रामीणों के बीच बांटेगी, जो अधिग्रहण के हिसाब से तय होगा।
आवासीय क्षेत्र के अधिग्रहण की स्थिति में कंपनी ग्रामीण क्षेत्रों में 10 डिसमिल व शहरी क्षेत्रों में 5 डिसमिल की जमीन पर मकान बनाकर देगी।
विस्थापितों के स्थानांतरण के लिए प्रति परिवार 15 हजार रुपये की व्यवस्था कंपनी करेगी।
कंपनी की ओर से प्रभावित परिवारों के समर्थ लोगों को दक्षता विकास व छात्रवृत्ति की सुविधा दी जाएगी।
कुछ बड़े निवेशकों की सूची
बर्नपुर सीमेंट इंडस्ट्रीज, पतरातू-500 करोड़ रुपये
रांची इंटीग्रेटेड स्टील लिमिटेड, सिल्ली-5,452 करोड़ रुपये
जिंदल साउथ वेल्थ स्टील लिमिटेड-3,5000 करोड़ रुपये
जिंदल स्टील व पावर लिमिटेड, सरायकेला-11,500 करोड़ रुपये
मित्तल स्टील लिमिटेड, रांची-40,000 करोड़ रुपये
वीएस डेम्पो एंड कंपनी लिमिटेड, मोहनपुर-1016 करोड़ रुपये
टाटा स्टील लिमिटेड, सरायकेला-42,000 करोड़ रुपये
कल्याणी स्टील लिमिटेड, रांची-1,883 करोड़ रुपये
भूषण स्टील लिमिटेड, जमशेदपुर-6,510 करोड़ रुपये
एचवाई ग्रेड पेलेट्‌स लिमिटेड, चाईबासा-4,285 करोड़ रुपये
हिंडाल्को इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड, लातेहार-7,800
बीएमडब्ल्यू इंडस्ट्रीज लिमिटेड, सरायकेला-591 करोड़ रुपये
रूंगटा माइंस, चाईबासा-517 करोड़ रुपये
अनिन्दिता ट्रेडर्स एंड इंवेस्टमेंट लिमिटेड, हजारीबाग-94 करोड़ रुपये
नरबेहराम गैस प्वाइंट लिमिटेड, सरायकेला-200 करोड़ रुपये
गोल स्पंज लिमिटेड, सरायके ला-67 करोड़ रुपये
कोहिनूर स्टील लिमिटेड, सरायकेला-410 करोड़ रुपये

No comments: