Sunday, November 30, 2008

सुशासन की हकीकत

सूबे में जबतक सुशासन नहीं आएगा, यहां के हालात नहीं सुधर सकते। आप हमें तीन महीने का समय दीजिए, मेरी सरकार बनते ही भयमुक्त समाज का निर्माण होगा जिसमें न तो दोषियों को बचाया जाएगा और न ही निर्दोषों को फंसाया ही जाएगा।'
ये वायदे वर्ष 2005 के चुनावी सभाओं में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करते फिर रहे थे। लालू-राबड़ी शासनकाल में लगातार बिगड़ती जा रही कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने में नीतीश सरकार ने बहुत हद तक सफलता भी पाई है। देशभर में सबसे अधिक अपराधियों (26125) को सजा इसी राज्य में हुए। संगीन अपराध के जुर्म में 80 अपराधियों को निचली अदालत से फांसी की सजा हुई। जबकि 5616 को उम्रकैद तथा 1598 अपराधियों को 10 वर्ष से अधिक का कारावास की सजा सुनाई गयी है। 10 वर्ष से कम सजायाफ्ता अपराधियों की संख्या 18831 है। के बाद पहली बार बाहुबलियों पर शिकंजा कसा गया। हत्या के जुर्म में पूर्णिया के राजद सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, सीवान के सांसद मो.शहाबुद्दीन, जिलाधिकारी जी.कृष्णैय्या हत्याकांड में पूर्व सांसद आनंद मोहन व उनकी पत्नी लवली आनंद, पूर्व विधायक अरुण कुमार व अखलाक अहमद, पूर्व विधायक राजन तिवारी तथा जदयू विधायक मुन्ना शुक्ला को फांसी व अन्य सजाएं सुनाई गयीं, वहीं दोहरे हत्याकांड के आरोपी लोजपा सांसद सूरजभान, डा. रमेश चन्द्रा अपहरण कांड में जदयू से निलंबित विधायक सुनील पांडेय, पूर्व मंत्री आदित्य सिंह, सपा विधायक रामदेव यादव समेत दर्जनभर नेताओं को निचली अदालत में सजा मुकर्रर हुई हैं।
हत्या के जुर्म में दाउदनगर अनुमंडल कारा में बंद गोह के जदयू विधायक प्रो.रणविजय कुमार, अतरी के पूर्व विधायक राजेंद्र यादव, पूर्व मंत्री सुरेंद्र प्रसाद यादव, बनियापुर के जदयू विधायक धूमल सिंह, लोजपा विधायक रामा सिंह, डेहरी के विधायक प्रदीप जोशी, भाजपा विधायक नित्यानंद राय, राजद विधायक बब्लू देव समेत विभिन्न दलों के दो दर्जन विधायकों पर कानून की तलवार लटक रही है। {H$Z हाल के दिनों में जिस तरीके से जदयू सांसद प्रभुनाथ सिंह को दोहरे हत्याकांड से उबारने के लिए नियमों को ताक पर रखा गया उससे सरकार के इरादों पर प्रश्नचिह्न खड़े होने लगे हैं। कहा जाता है कि इस हत्याकांड की सुनवाई के दौरान जब में प्रभुनाथ ने अपने बाहुबल का इस्तेमाल किया तो इस मामले को भागलपुर की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया। इस पर हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार भी लगाई। मामले की सुनवाई भागलपुर में शुरू हुई लेकिन वहां भी सरकारी हस्तक्षेप के मामले उजागर हुए। अंत में पटना सिविल कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई जहां से वे बाइज्जत बरी हो गये। हालांकि उक्त सांसद के एक अन्य मामले की सुनवाई पटना सिविल कोर्ट में चल रही है। पर इस बात की चर्चा है कि क्या इस बार भी गवाहों को सरकारी हथकंडों का इस्तेमाल कर प्रभावित किया जाएगा? इस बाबत पूर्व विधि मंत्री व राजद नेता शकील अहमद खान कहते हैंे कि सरकार राजनीतिक द्वेष से काम कर रही है। प्रभुनाथ सिंह प्रकरण में सारे नियमों को ताक पर रखा गया है और अनुभवहीन (10 वर्ष से कम अनुभव) एपीपी से बहस करवायी गयी। गवाहों को भी डराया-धमकाया गया। जबकि विपक्षी दलों के नेताओं को फटाफट सजा करवा दी जा रही है। शकील अहमद के आरोप कितने सच हैं इसका जवाब तो अपराध अनुसंधान में लगे पुलिस अधिकारी ही दे सकते हैं।ंकि यह कोई पहला मामला नहीं है जिसमें प्रभुनाथ सिंह बाइज्जत बरी हुए हैं। पुलिस सूत्रों की मानें तो इनका राजनीतिक सफर ही हत्या जैसे संगीन आरोपों से शुरू हुआ है। 1977 में जब वे पहली बार विधायक बने थे उस समय भी वे मशरख के कांग्रेसी विधायक रामदेव सिंह की हत्या के आरोपी थी। तब से लेकर अबतक इन पर तीन दर्जन से अधिक हत्या, लूट एवं अन्य अपराधों के आरोप लगे। फिर भी राजनीतिक पहुंच की बदौलत प्रभुनाथ बराबर कानूनी शिकंजे से बचते रहे।
टाल क्षेत्र के कुख्यात जदयू विधायक अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार के आपराधिक किस्से चर्चित रहे हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार अकेले मोकामा में ही उनपर हत्या, लूट व बलात्कार के दो दर्जन से अधिक मामले दर्ज हैं। तीन साल में पटना के कोतवाली थाने में ही पत्रकार को जान से मारने, जमीन हड़पने व रंगदारी के चार मामले दर्ज हुए हैं। बावजूद इसके अनंत singh पर हाथ डालने में पुलिस के पसीने छूट रहे हैं। इस बाबत राज्य पुलिस प्रवक्ता-सह-सहायक पुलिस महानिदेशक अनिल सिन्हा बताते हैं कि कानून अपना काम कर रहा है। समय आने पर अनंत सिंह भी कानून के शिकंजे में होंगे।
सूबे के देहाती इलाकों की कौन कहे, राजधानी पटना भी पूरी तरह से अपराधमुक्त नहीं हो पाया है। तीसरी वर्षगांठ के जश्न में डूबी सरकार को अपराधियों ने कड़ी चुनौती देते हुए 19 नवंबर को सुल्तानगंज थाने से महज 50 गज की दूरी पर दिनदहाड़े कांग्रेसी नेता यदुनंदन यादव को गोलियों से भून दिया। वहीं लुटेरों ने एनएमसीएच के पास पुलिस की मौजूदगी में ही एक दवा दुकान में जमकर लूटपाट की। इसके तीन दिन पहले राजधानी में ही बाटा शू कंपनी के कार्यकारी प्रबंधक को गोलियों से भून दिया गया।
स्पीडी ट्रायल के आंकड़ों के खेल में मशगूल नीतीश सरकार के तीन वर्ष के शासनकाल में ही करीब 2103 डकैतियां हुईं। 8474 निर्दोष नागरिक गोलियों के शिकार हुए। जिला मुख्यालयों समेत अन्य जगहों पर दिनदहाड़े लूट की 5034 व चोरी की 35693 घटनाएं हुईं। स्कूली छात्रों समेत 6487 लोग अपहृत हुए। सामंती जुर्म के लिए सदा से कुख्यात बिहार में नीतीश शासनकाल के दौरान 3005 मासूमों एवं अबलाओं की अस्मत लूटी गई। लूट व छिनतई की 3552 व बैंक लूट व डकैती की 66 घटनाएं हुईं। आजादी के बाद बैंक लूट की अबतक की सबसे बड़ी घटना राजधानी के कंकड़बाग इलाके में हुई जहां घोड़े पर सवार लुटेरों ने 50 लाख रुपये लूट लिये। राजेन्द्र नगर व पटना जंक्शन के बीच चलती ट्रेन में दिनदहाड़े पूर्व डीआईजी की हत्या गोली मारकर कर दी गयी। बोरिंग रोड में सेवानिवृत आइएएस को गोलियों से भून दिया गया। पाटलिपुत्रा इलाके में प्रो. पापिया घोष हत्याकांड की गूंज देशभर में सुनी गयी। प्रदेश में तीन दर्जन से अधिक मानवाधिकार उल्लंघन के मामले भी प्रकाश में आए। phir भी अपराधों का यह आंकड़ा लालू-राबड़ी शासनकाल से काफी कम है
पाक साफ कोई नही ना लालू ना नीतिश
डीजीपी डीपी ओझा बताते हैं कि हमाम में सारे राजनीतिक दल नंगे हैं। इनका दावा है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के अपराध हो ही नहीं सकते। पेश है बिहार की कानून-व्यवस्था पर संवाददाता श्याम सुन्दर के साथ हुई बातचीत के अंश
क्या सूबे में अपराधियों का मनोबल टूटा है?
हां, यह सही है कि प्रदेश में भयमुक्त समाज निर्माण की दिशा में सरकार के प्रयास दिखने शुरू हो गये हैं। फिर भी अपेक्षित परिणाम नहीं आए हैं। अपराधियों पर अंकुश लगाने में पुलिस बहुत हद तक सफल हुई है।
क्या पुलिस सत्ता के दबाव में भी काम करती है?
जब तक प्रशासनिक व पुलिस संगठन स्वायत्त नहीं होंगे तबतक राजनेताओं का हस्तक्षेप जारी रहेगा। जब मैं डीजीपी था, उस समय भी मैंने कहा था कि हमाम में सारे दल नंगे हैं। आज भी इस वाक्य पर मैं कायम हूं। अगर पुलिस का दबाव नहीं होता तो ऊं चे रसूख वाले सारे अपराधी, चाहे वे विधायक अथवा सांसद ही क्यों नहीं हों, नहीं बचते।
क्या सूबे में अभी भी सत्ता संरक्षित अपराधियों का बोलबाला है?
सीधे तौर पर तो नहीं कहा जा सकता। फिर भी पाक साफ न तो लालू प्रसाद हैं और न ही नीतीश कुमार व रामविलास पासवान। एक ओर जहां लालू को मो. शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली सांसद की जरूरत है तो वहीं नीतीश कुमार को प्रभुनाथ सिंह एवं मोकामा विधायक अनंत सिंह की वहीं रामविलास पासवान को भी सूरजभान व मुन्ना शुक्ला जैसे बाहुबली नेताओं की दरकार है। राष्ट्रवाद का राग अलापने वाली भाजपा भी कम नहीं है। उसे भी नित्यानंद राय सरीखे लोग चाहिए। इन लोगों के रहते भयमुक्त समाज की कल्पना बेमानी है।
इसके जनता की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दिख रही है?
जब राजनीति में अपराधियों का वर्चस्व बढ़ता है तब जनता असहाय हो जाती है। ऐसी स्थिति में जनता व सूबे की बेहतरी युवा ही सोच सकते हैं। युवाओं में अंगड़ाई शुरू हो गयी है। दो पीढ़ी आते-आते युवाओं की यही अंगड़ाई तूफान बनकर आएगी। नौजवान जागेगा, तो बदलाव अपने-आप आ जाएगा।
कैसा बदलाव आएगा?
यह एक बड़ा सवाल है। बदलाव वोट से आएगा या बंदूक से, फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह तय है कि तीन साल पहले नेपाली माओवादी नेता प्रचंड ने पशुपतिनाथ से तिरुपतिनाथ का जो नारा दिया था, उसका असर देश में भी दिखने लगा है।

1 comment:

Jimmy said...

nice blog


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