Tuesday, December 30, 2008

ऐसे ही नहीं बना चीन नंबर वन


बीजिंग ओलंपिक में चीन ऐसे ही नहीं बन गया दुनिया का बेताज बादशाह। इसके लिए उसने एड़ी-चोटी एक कर दी। पानी की तरह पैसे बहाया। खिलाड़ियों का मनोेबल बराबर ऊं च्चा रखा वहीं आम लोगों में इसके प्रति जज्बा भर दिया आैर राष्ट्रीय स्वाभिमान से जोड़कर देखा। तभी आज से 20 साल पहले सोल ओलंपिक में मात्र 20 मेडल लेने वाला चीन, इस बार दुनिया में सबसे अधिक मेडल लेने में कामयाब रहा। उसने कुल 51 स्वर्ण पदक लिये। लाख टके का सवाल यह है कि आखिर 20 वर्षों के भीतर चीन में ऐसा क्या बदलाव आया जिससे वह करिश्माई साबित हुआ। इसके लिए उसकी तैयारियों व समर्पण के साथ ही अन्य पहलुओं पर भी गाैर करना होगा।
चीन में 44,000 खेल विद्यालय हैं जहां 3, 72, 290 विद्यार्थियों को खेल का प्रशिक्षण दिया गया। इसी में से बीजिंग ओलंपिक के लिए खिलाड़ियों का चयन हुआ। वे पेशेवर खिलाड़ी तो बने ही, सरकर ने उन्हें वेतन भी देना शुरू कर दिया। इससे उनमें हाैसला अफजाई हुआ आैर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर दिखाया। इन खिलाड़ियों को कड़ी आैर उच्चस्तर के प्रशिक्षण के लिए 25,000 पूर्णकालीन प्रशिक्षक मुहैया कराये गये। इसके बाद राष्ट्रीय स्पद्धर्ाओं के लिए 15,925 राष्ट्रीय खिलाड़ियों को चुना गया आैर अंत में अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन के आधार पर 3,222 एलीट एथलीटों को चुना गया जबकि अन्य खिलाड़ियों को ओलंपिक में भाग लेने की इजाजत नहीं मिली।
ऐसी बात नहीं है कि बीजिंग ओलंपिक की तैयारियां सिर्फ सरकारी स्तर तक ही सीमित रहा। बिल्क आम लोगों ने भी इसका भरपूर समर्थन किया। सरकारी इलीट सिस्टम के साथ ही मास स्पोर्ट्‌स सिस्टम चलाया गया। इसमें देश में अधिकांश बुिद्धजीवियों ने हिस्सा लिया। इस मद में भी कई अरब यूनान (चीनी मुद्रा) खर्च किये गये।
बीजिंग ओलंपिक पर चीनी सरकार द्वारा अपनाये गये उपाय-----
मैदान---------8,50,000
स्टेडियम------------6,20,000
स्पोर्ट्‌स मीट्‌स----------40,000 (हर साल)
खेल विद्यालय----------44,000
प्रशिक्षित खिलाड़ी---3,72,290
पेशेवर खिलाड़ी--------46,758
प्रशिक्षक---------------25,000
राष्ट्रीय खिलाड़ी----------15,924
अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी-----3,222

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