Tuesday, December 30, 2008

ऑखों के सामने नाचती रही मौत

अंतर्राष्ट्रीय जल मार्ग के रास्ते अमेिरका के हुस्टन बंदरगाह से मुंबई के िलए रवाना हुए जहाज को सोमालिया के िनकट जल दस्युओं ने 15 िसतंबर को अपने कब्जे में ले िलया। लगातार दो महीनों तक जल दस्युओं के कब्जे में रहे लोगों के मन से भय अभी तक दूर नहीं हो पाया है।
"ये बहुत बुरा अनुभव था। हमें मानिसक प्रता़डना दी गयी। आंखों के सामने बराबर मौत नाचती रहती थी। फिर भी भगवान का शुिक्रया और परिवारजनों का प्यार और दुआओं ने आपलोगों के सामने खींच लाया। अपने पूरे दल के साथ देशवािसयों के बीच जो खुशी हो रही है उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता।' यह कहना है सोमािनया में जल दस्युओं के कब्जे से मुक्त हुए जापानी मालवाहक जहाज स्टोल्ट वेलर (फ्लीटिशप मैनेजमेंट कंपनी, हांगकांग) के कैप्टन प्रभात गोयल का। श्री गोयल ने कहा-"हमें मानिसक तौर पर प्रताि़डत किया गया। लेिकन अंत में हम सुरिक्षत लौटने पर खुश हैं। मैं मििश्रत भावनाओं के साथ वापस पहुंचा हूं और मीिडया का धन्यवाद करना चाहता हूं। मुझे अपनी पत्नी पर गर्व है। अपह्त लोगों का कहना है िक अपहर्ता गोलीबारी किया करते थे तािक लोगों में दहशत व्याप्त रहे। यही बात चालक दल के सदस्य राजिंदर मलिक ने भी कही। मिलक कहते हैं-"अपराधी बराबर मानिसक प्रता़डना देते रहते थे। लगातार दो महीनों तक पानी व खाना के लिए वे तरसते रहे।'
वहीं पटना (िबहार) के रहने वाले चालक दल के सदस्य संतोष कुमार बताते हैं "वे दो महीने दहशत भरे थे। आंखों के सामने मौत नाचती रहती थी। कब, िकसकी मौत हो जाये, कहना मुश्िकल हो रहा था। भोजन भी खत्म होता जा रहा था। जहाज में ईंधन की भी कमी थी। एक-एक पल िबताना मुश्िकल हो रहा था। भगवान न करे िकसी दुश्मन को भी वैसे दिन देखने को िमले। परिवार से भी संपर्क टूट गया था। हमलोगों ने जिंदगी की आस ही छो़ड दी थी। मौत से जीतकर परिवार के बीच आने की जो खुशी हो रही है, उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता'।
वे बताते हैं िक संतोष की मानें तो फ्लीटिशप कंपनी का यह जहाज 24 अगस्त को अमेिरका के हुस्टन बंदरगाह से रवाना हुआ था, उसे 19 िसतंबर को मुंबई पहुंचना था। 22-23 दिन बीत चुके थे। चालक दल के सभी सदस्य लंच की तैयारी में ही थे। स्वदेश पहुंचने की खुशी समुद्र की लहरों की तरह तरंगें मार रही थीं। अभी जहाज सोमालिया के िनकट पहुंचा ही था कि 15 िसतंबर को दोपहर करीब डे़ढ बजे अचानक जल दस्युओं ने हमला बोल िदया। दो स्पीड वोट पर सवार हिथयारबंद हमलावरों ने जहाज को अपने कब्जे में लेकर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। लोग माजरे को समझ पाते, उसके पहले ही हमलावरों ने कैप्टन प्रभात कुमार गोयल समेत तीन सदस्यों को अपने कब्जे में ले िलया और धमकाते हुए इशारों में ही सोमालिया चलने को कहा। हालांिक वे नहीं जानते थे कि सोमालिया िकधर है? और न ही वे अंग्रेजी जानते थे। आपस में ही कुछ बातें करते थे। फिर क्या था? डरे-सहमे कैप्टन ने जहाज का रुख सोमालिया की ओर कर िदया। रास्ते भर अपह्र्ता गुस्साये स्वर में चालक दल के अन्य सदस्यों को धमकाते रहते। जब पूरी तरह से हमलोग उसके कब्जे में आ गये तब भी बराबर जगह बदलते रहे, शायद उन्हें भी डर था िक कहीं भारतीय नौसेना या अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना उन पर हमला न कर दे। अंत में सुरक्षित ठिकाना समझकर हमलावरों ने आइल (सोमालिया) नामक स्थान पर सभी को िटकाये रखा। इस दौरान लगातार फिरौती के िलए दबाव बनाया जाता रहा। कैप्टन व चीफ इंजीिनयर के माध्यम से यागामारू टैंकर (मालवाहक जहाज का मािलक) के साथ ही फ्लीटिशप मैनेजमेंट कंपनी पर दबाव ब़ढता जा रहा था। शुरू में 6 मिलियन अमेरिकी डॉलर फिरौती की मांग की गयी जबकि िदल्ली में अखबारों से जानकारी मिली कि 2.5 मििलयन डॉलर पर कंपनी ने हमलोगों को छु़डाया। इस दौरान कई बार अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना भी जहाज के नजदीक आती रही फिर भी मामला सुलझने की बजाय उलझता ही जा रहा था। भारतीय नौसेना का भी जहाज दूर में िदखाई देता था।
कैसे बीते वे िदन? इस पर उन्होंने कहा कि हमलावरों ने मानिसक प्रता़डना जरूर दी, कई बार ऐसी भी नौबत आई जब लगा िक अब जीना मुश्िकल है। वे इशारों-इशारों में ही गला काट लेने, गोिलयों से उ़डा देने आदि की धमिकयां देते रहे। 5 नवंबर को अपरािधयों ने कैप्टन गोयल, सेकेंड अफसर व चीफ इंजीिनयर को धमकाते हुए व्हील हाउस ले गये। थो़डी देर बाद ही गोिलयों की आवाज सुनी गयी। इससे सारे लोग सहम गये और िकसी अनहोनी की आशंका से भयभीत हो गये। इस दौरान सिफर् दाल व मछली खाकर अपनी जिंदगी गुजारी, क्योंिक खाना पहले ही खत्म हो चुका था, जो बचा था उसी में से शुरू के एक सप्ताह तक हमलावरों ने भी खाया।

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