Tuesday, December 30, 2008

मजबूत होते नक्सली

िसयासतदानों के भाषणों में नक्सलवाद को उखा़ड फेंकने के दावे तो कई बार किये गये पर यह उख़डने की बजाय तेजी से पसरता गया। िहन्दुस्तान के मानिचत्र पर 15 नवंबर,2000 को 28वें राज्य के रूप में झारखंड का उदय हुआ। झारखंड अब पूरे आठ साल का हो चुका है। इन आठ सालों में कई क्षेत्रों में बहुत कुछ बदला, लेकिन नहीं बदल सका तो वर्षों से चला आ रहा नक्सली आंदोलन का स्वरूप। उम्मीद तो यही की जा रही थी िक राज्य की िसयासतदान झारखंड में अपना नया रंग िदखाएंगे और खद्दर (खादी) के रास्ते नक्सलवाद धीरे-धीरे दम तो़ड देगा। लेिकन उम्मीद के उलट िपछले आठ सालों में मुख्यमंत्रियों के चार चेहरे बदले। लेकिन अफसोस की ये चारों मुख्यमंत्री झारखंड के नक्सली चेहरे को बदलने में नाकामयाब ही रहे। इन आठ सालोें में ही ऐसे हालात उत्पन्न हो गये िक नक्सिलयों की हिंसक तेवर से राजधानी रांची भी थर्राने लगी।
वैसे तो संयुक्त िबहार के झारखंड वाला िहस्सा पहले से ही नक्सलियों की िगरफ्त में रहा है लेकिन जिस तेजी से िपछले आठ सालों में नक्सलियों ने अपना दबदबा कायम िकया है। वह सरकार के िलए एक क़डी चुनौती बन गयी है। नवंबर, 2000 में प्रदेश के 18 िजलों में से 9 ही नक्सलियों की िगरफ्त मेंं थे, जहां उनकी अपनी अदालतें लगती थीं और नक्सिलयों की लाल सेना कानून को धत्त्ाा बताते हुए अपना फैसला सुनाया करती थी। तब नक्सिलयों का ध़डा भी बंटा हुआ था लेिकन नवंबर, 2004 में एमसीसी और पीपुल्सवार का िवलय हुआ और नयी माओवादी संगठन भाकपा (माओवादी) ब़डी ताकत के साथ उभरा। देखते ही देखते संपूर्ण झारखंड नक्सिलयों की आगोश में समा गया। आज हालात ऐसे हैं िक राज्य पुिलस के अलावा केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद 24 में से 22 िजले नक्सलियों की िगरफ्त में आ गये हैं। इनमें से 16 िजलों में उनकी अपनी हुकूमत चल रही है। झारखंड का "चतरा' इलाका छत्त्ाीसग़ढ का "बस्तर' सािबत हो रहा है जहां के सुदूर इलाकों में दिन के उजाले में भी पुिलस जाने से कतराने लगी है। वहीं 120 से अिधक थाने नक्सलियों के ही रहमोकरम पर सुरिक्षत चल रहे हैं। मात्र आठ वर्षों में ही एक सांसद, दो विधायक, एक एसपी व दो डीएसपी समेत करीब 400 पुिलस व सुरक्षाबल नक्सलियों की गोलियों के िशकार हुए हैं। वहीं 900 आम नागरिक भी नक्सली हिंसा में मारे गये हैं। हालांिक नक्सिलयों के तांडव को रोकने के लिए सरकार ने भी दबिश बनाने की कोिशश की है। इस दौरान दर्जनों हार्डकोर नक्सली हिरासत में िलए गये हैं। फिर भी िजस तरीके से नक्सलियों का हिंसक तेवर िसयासतदानों को थर्रा रहा है उसके मुकाबले पुलिसिया दबिश बरसात में पानी के बुलबुले की तरह ही सािबत हो रही है।
आश्चर्य तो यह िक सरकार की सारी लोक-लुभावन घोषणाओें व योजनाओं को धत्त्ाा बताते हुए तेजी से मिहलाओं का भी नक्सिलयों के प्रित आकर्षण ब़ढा है। आिखर क्या कारण है िक इतने अल्प समय में ही ग्रामीण मिहलाएं व किशोर व्यवस्था को चुनौती देते फिर रहे हैं और अपनी आवाज हिंसक तेवर के साथ सुनाने को उतावले हैं। इस बाबत सामाजिक िवश्लेषक प्रो.रामदयाल मुंडा बताते हैं िक आठ साल बीतने के बावजूद सत्त्ाा की हुकूमत असली आदिवािसयों के हाथों में नहीं पहुंची है। चारों आेर लूट-खसोट मची हुई है। जबतक प्रदेश की हुकूमत साम्राज्यवादी पूंजी के इर्द-िगर्द मंडराती रहेगी, नक्सलवाद का वीभत्स चेहरा सामने आता जाएगा। प्रशासिनक उपेक्षाओं और पूंजीपितयों, ठेकेदारों और उद्योगपितयों के शोषण ने झारखंड के आिदवासी अंचलों में प्रितिक्रया के रूप में नक्सलवाद को सिक्रय होने का अवसर जुटाया है।
नक्सली िवद्रोह को सामाजिक-आिर्थक समस्या मानने वाले मुख्यमंत्री िशबू सोरेन एक ओर नक्सलियों को बातचीत के िलए खुला आमंत्रण देते फिर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर झारखंड एवेन्यू, नारी मुिक्त संघ, क्रांितकारी किसान समिित व क्रांितकारी सांस्कृितक संघ जैसे लोकतांत्रिक अिधकारों की आवाज बुलंद करने वाले संगठनों को प्रितबंिधत करके कुछ दूसरा संदेश दे रहे हैं। पीयूसीएल के महासचिव शिशभूषण पाठक बताते हैं िक शुरू से ही शोिषतों, गरीबों की आवाज बंदूक के बल पर दबाया गया परिणामस्वरूप यहां के ग्रामीण भी हिथयार से लैस होते गये और अपनी आवाज बंदूक से सुना रहे हैं।
नक्सलियों के शिकार पुिलस व आम नागरिक (आंक़डों में)
वर्ष पुलिस आम नागरिक
2001---56
---------107
2002----69--------77
2003----20---------93
2004----45------106
2005----30------79
2006-----45-----93
2007------11-----175
2008(अक्तूबर तक)---34---124
क्षितग्रस्त सरकारी भवन
वर्ष
2002-----04
2003-----06
2004-----14
2005-----06
2006-----15
2007-----12
2008(अक्तूबर)----10
9 जुलाई,2008---झारखंड के बुरूहातू गांव में माओवािदयों ने पूर्व मंत्री व िवधायक रमेश सिंह मुंडा को गोली मार कर हत्या कर दी।
15 अप्रैल, 2008---माओवादी बंदी के दौरान झारखंड के चांिडल में दो आम लोगों की हत्या
26 अप्रैल, 2008---झारखंड के दुमका के िशकारीपा़डा इलाके मेें एक एएसआई, 3 पुलिसकर्मी मारे गये, 6 घायल।
8 अप्रैल,2008---माओवादी व शांितसेना के बीच आपसी झ़डप में शांितसेना के आठ लोग मारे गये। इसमें सेना प्रमुख भादो सिंह शामिल है।
एक अप्रैल, 2008---हजारीबाग के िबष्णुगढ इलाके में मुठभे़ड में 9 सीआरपीएफ मारे गये, 11 घायल वहीं दूसरी ओर, खूंटी िजले में 4 ग्रामीणों की हत्या माओवािदयों ने कर दी।
9 फरवरी, 2008---िगरीडीह के घने जंगलों में माओवािदयों ने परितांड थाने को उ़डा िदया वहीं सौ से अधिक पुलिसकर्मी दो दिनाें तक माओवादियों से िघरे रहे।
30 अगस्त, 2008---झारखंड के घाटिशला क्षेत्र में बारूदी सुरंग िवस्फोट में एक इंस्पेक्टर समेत 12 पुिलसकर्मी मारे गये।
(िशबू को सत्त्ाा संभालते ही माओवादियों ने िवस्फोट कर एक ब़डी चुनौती दी है। गौरतलब है कि माओवादियों ने यूपीए सरकार के न्यूक्लीयर डील के िवरोध मंें िहंसक वारदातों को अंजाम देने की पहले ही चेतावनी दे रखी है।)

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