Wednesday, February 4, 2009

मतभेद नहीं, मनभेद बरकरार

सतही तौर पर भाजपा की प्रदेश इकाई एक छतरी के नीचे काम कर रही है लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि पार्टी कार्यकर्ता गुटबंदी के शिकार हैं। केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में आपसी विवाद भले ही थम गया हो लेकिन मनभेद अभी भी बरकरार है। कयास लगाया जा रहा है कि समय रहते मनभेदों को पाटा नहीं गया तो लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर प्रतिकुल असर पड़ सकता है। संगठन में गुटबंदी अभी से ही दिखनी शुरू हो गयी है। पार्टी की ओर से आयोजित विजय संकल्प सम्मेलन में गुटबंदी के साथ ही मनभेद भी उभरकर सामने आ गये। मंच से वे सारे नेता गायब रहे जो प्रदेश अध्यक्ष राधामोहन सिंह और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी से खफा चल रहे हैं।
सम्मेलन की सफलता के लिए प्रदेश को तीन हिस्सों (मोतिहारी, भागलपुर और गया) में बांटा गया था। स्पेशल कोर गु्रप की बैठक में तय हुआ था कि सभी जगहों पर प्रदेश के पार्टी पदाधिकारी उपस्थित रहेंगे। सम्मेलन को बड़े नेताओं के साथ ही स्थानीय नेता (मंत्री और विधायक) भी संबोधित करना था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। प्रदेश अध्यक्ष के गृह जिले मोतिहारी की सभा में प्रदेश प्रवक्ता विनोद नारायण झा, विजय मिश्र समेत आधा दर्जन नेताओं को बोलने नहीं दिया गया। मोदी से खफा चल रहे चन्द्रमोहन राय को बुलाया नहीं गया। असंतुष्ट गुट के नेता अश्विनी चौबे, जनार्दन सिंह सिग्रीवाल आदि नेता भी नहीं पहुंचे। इसके कई मायने निकाले गये। सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन अफवाह यह भी उड़ी कि कार्यक्रम में शिरकत नहीं करने वाले अधिकांश नेता मोदी से अभी खफा ही चल रहे हैं। भागलपुर की सभा में प्रेम पटेल और पार्टी कोषाध्यक्ष को बोलने का मौका नहीं मिला।
गया की सभा भी विवादों में रही। मगध और कैमूर के 13 जिलों के कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाई के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में अतिपिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद चौरसिया, वरिष्ठ नेत्री सुखदा पांडेय, रामाधार सिंह समेत दर्जनभर स्थानीय नेताओं को बोलने नहीं दिया गया। इस बाबत पार्टी उपाध्यक्ष रामेश्वर चौरिसया कहते हैं,
"स्थानीय नेताओं को तरजीह नहीं देने से पार्टी में गलत परंपरा की शुरुआत हुई है। इसका असर देर-सबेर कार्यकर्ताओं पर भी दिखेगा।' भाजपा के दिग्गज नेता डा.सीपी ठाकुर की गैरमौजूदगी भी प्रदेश नेतृत्व को खटका। हालांकि पार्टी की एकजुटता के लिए संघ पृष्ठभूमि से आये क्षेत्रीय संगठन प्रभारी ह्दयनाथ सिंह तीनों सभाओं में उपस्थित रहे। पार्टी सूत्रों का कहना है मोदी के खिलाफ बागी तेवर लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर से तीखे हो सकते हैं।
आंतरिक विवाद इस कदर गहरा गया है कि स्पेशल कोर गु्रप की बैठक (27 जनवरी) में भी चुनाव अभियान समिति को अंतिम रूप नहीं दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष कहते हैं,"चुनाव की घोषणा होते ही अभियान समिति में सदस्यों का चयन कर लिया जाएगा।' हालांकि गांव से विजय संकल्प अभियान की शुरुआत का निर्णय लिया गया। भाजपा की अनुषंगी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्‌, भारतीय जनता युवा मोर्चा, भाजपा महिला मोर्चा और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा भी प्रदेश नेतृत्व के उपेक्षापूर्ण रवैये से खफा चल रहा है। बताया जाता है कि पार्टी के 35 विधायक प्रदेश नेतृत्व से खफा चल रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद वे कभी भी मोदी के खिलाफ बगावत कर सकते हैं।
मौजूदा विवाद मंत्रिमंडल पुनर्गठन के बाद से शुरू हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल से भाजपा कोटे के दो मंत्रियों (चन्द्रमोहन राय और जनार्दन सिंह सिग्रीवाल) की छुट्टी कर दी। मोदी गुट के अधिकांश विधायकों को मलाईदार विभाग दिये गये जबकि जो मंत्री सुशील मोदी के गुडबुक में नहीं थे उन्हें मुख्यमंत्री ने महत्वहीन विभाग थमा दिया। इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। पहले से ही जदयू नेताओं के आगे बौने दिख रहे भाजपा कार्यकर्ताओं व प्रदेश के दर्जनभर नेताओं ने मोदी व प्रदेश अध्यक्ष राधामोहन सिंह के खिलाफ बगावत कर दी। मामला दिल्ली दरबार में पहुंचा। मामले को सुलझाने के लिए बिहार प्रभारी कलराज मिश्र की अध्यक्षता में स्पेशल कोर ग्रुप की बैठक हुई। उसमें मोदी से नाराज चल रहे वरिष्ठ नेता अश्विनी चौबे ने कहा, "आप (सुशील कुमार मोदी) चुप रहिए! आपको बोलने का कोई हक नहीं है। जिस सरकार में अपनी ही बहू-बेटियों की इज्जत नहीं बचे, लगातार कार्यकर्ता अपमानित होते रहे, उसमें मंत्री बने रहने का क्या फायदा? कुछ कीजिये (कलराज मिश्र जी)। नहीं तो प्रदेश नेतृत्व बिखर सकता है।'
यह पहला मौका नहीं था जब मोदी के खिलाफ विद्रोही तेवर उग्र हुए हों। विवाद चाहे खाद्य और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री नरेन्द्र सिंह बनाम भाजपा विधायक फाल्गुनी यादव के बीच का हो या पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक जर्नादन सिंह सिग्रीवाल बनाम जदयू विधायक राम प्रवेश राय का या फिर नगर विकास मंत्री भोला सिंह बनाम राम प्रवेश राय की, सभी मामलों में मोदी और प्रदेश अध्यक्ष ही घेरे में रहे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि विवाद दिनोंदिन गहराता जा रहा है। प्रदेश अध्यक्ष भी इससे इंकार नहीं करते हैं। उनका कहना है,"मतभेद सुलझा लिये गये हैं। आपसी मनभेदों को टटोला जा रहा है। समय रहते इस पर भी काबू पा लिया जाएगा।'
एनडीए की सरकार (भाजपा-जदयू गठबंधन) होने के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व चिंतित दिख रहा है। दिल्ली में बैठे नेताओं को चिंता है कि सरकार बनते ही मोदी के खिलाफ एकबारगी इतने तीखे क्यों होते जा रहे हैं? चिंता का दूसरा कारण यह है कि सरकार में शामिल होने के बावजूद भाजपा का जनाधार क्यों घटता जा रहा है? नाम नहीं छापने की शर्त पर एक नेता ने बताया कि मोदी सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। पार्टी की चिंता उन्हें नहीं रही। लाख टके का सवाल है कि आने वाले दिनों में क्या मोदी केंद्रीय नेतृत्व को यह विश्वास दिला पायेंगे कि प्रदेश भाजपा एकजुट है?
दूसरी ओर, लोकसभा में सीटों के बंटवारे में भी विवाद उभरने के आसार अभी से ही दिखने शुरू हो गये हैं। एक ओर जहां जदयू भागलपुर, किशनगंज, मोतिहारी, छपरा और नवादा लोकसीट को भाजपा के लिए कमजोर मान रहा है वहीं भाजपा इन सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर गठबंधन धर्म को संकट में डाल दिया है। मोतिहारी सीट पर प्रदेश अध्यक्ष राधामोहन सिंह अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं। पटना साहिब लोकसभा सीट से सिने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, डा. उत्पलकांत समेत आधा दर्जन नेताओं के नाम पर विचार किये जाने की चर्चा जोरों पर है। सिन्हा ने सूरत (गुजरात) में कहा है कि अगर पटना साहिब से टिकट नहीं मिला तो वह जोगी (संन्यासी) बन जाएंगे। कमोबेश ऐसी स्थिति अधिकांश सीटों पर दिख रही है।

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