Thursday, April 30, 2009

तिकड़ी नेताओं की अिग्नपरीक्षा

सियासत आैर गंगा नदी का पुराना रिश्ता रहा है। कभी बिहार की कुर्सी पर विराजमान होने को लालायित सियासतदान मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने के लिए गंगा में फेंकवाने की धमकी विधायकों को दिया करते थे। लेकिन पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में उल्टा हो रहा है। परिसीमन के बाद बदली हुई परििस्थति में दियारा इलाके के मतदाता सियासी चाल चलने वाले नेताओं को धमकाते फिर रहे हैं। संयोग से सूबे के चाैथे चरण में होने वाले पाटलिपुत्र, पटना साहिब आैर नालंदा लोकसभा सीटेंे गंगा के दियारा को छूता हुआ आगे बढ़ते हंै। इन तीनों सीटों पर देश की निगाहें टिकी हुई हैं। वह इसलिए कि पाटलिपुत्र सीट से रेल मंत्री आैर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इन्हें कड़ी चुनाैती दे रहे हैं जदयू के प्रत्याशी डॉ. रंजन प्रसाद यादव। कभी लालू के जिगरी दोस्त रहे रंजन यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास रथ पर सवार होकर सियासी बैतरणी पार करने की फिराक में हैं। छह विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बना यह क्षेत्र यादव बहुल माना जाता है। इसमें दानापुर, जहां भाजपा का कब्जा है, के अलावा फुलवारीशरीफ, बिक्रम, मनेर, पालीगंज आैर मसाैढ़ी विधानसभा क्षेत्र को शामिल किया गया है। फुलवारीशरीफ राजद प्रवक्ता श्याम रजक का क्षेत्र है तो बिक्रम आैर दानापुर से पूर्व सांसद रामकृपाल यादव बराबर बढ़त बनाते रहे हैं। लालू प्रसाद को भरोसा है कि भले ही दानापुर सीट भाजपा के खाते में चला गयी हो, लेकिन यहां िस्थत अपनी खटाल से राजनीति करने का फायदा उन्हें मिल सकता है। लालू के साथ ही राबड़ी देवी भी अपने पटना प्रवास के दाैरान अधिकांश समय गाैशाला में ही बीताती हैं। बावजूद इसके लालू का रास्ता आसान नहीं दिख रहा है। इसी साल होली के दिन इस सीट से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव देने वाले पूर्व राज्यसभा सदस्य आैर स्थानीय नेता विजय सिंह यादव एन माैके पर पलट गये आैर कांग्रेस से अपनी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में कूद गये। दियारा इलाके में इनकी अच्छी पकड़ बतायी जा रही है। वैसे मुिस्लम मतदाताओं पर भी इन्हें भरोसा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रथम चरण में ही "माय' (मुिस्लम-यादव) समीकरण में दरार आ गयी है। हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। फिर राजद सुप्रीमो का कांग्रेस के खिलाफ हताशा-भरे बयान एक ही साथ बहुत कुछ कह जाते हंै। कभी किंगमेकर की भूमिका में रहे लालू प्रसाद को इस सीट पर कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।
एक ओर जहां पाटलिपुत्र सीट पर तीन यादवों की भिड़ंत है वहीं दूसरी ओर पटना साहिब लोकसभा इलाका दो कायस्थों का अखाड़ा बन गया है। बिहारी बाबू के नाम से चर्चित सिने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, तो अचानक छोटे पर्दे के स्टार अभिनेता शेखर सुमन कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं। इस क्षेत्र के शहरी इलाकों में कायस्थों के अलावा बड़ी आबादी मुसलमानों की है। थोड़े-बहुत सिख मतदाता भी हैं। शेखर सुमन को कांग्रेस कैडर के अलावा मुसलमानों के साथ ही स्वजातीय वोट बैंक पर भरोसा है । हालांकि बिहारी बाबू नीतीश कुमार की विकास-छवि, सुशासन के नारों आैर भाजपा के साथ ही अतिपिछड़ा आैर महादलितों पर भरोसा कर रहे हैं जबकि ग्रामीण इलाके मसलन बख्तियारपुर, फतुहा, दीघा विधानसभा सीटों के मतदाताओं की बदाैलत राजद उम्मीदवार विजय साहू भी सफलता की उम्मीद पाले हुए हैं। राजद सुप्रीमो को मुसलमान मतदाताओं पर भी भरोसा बना हुआ है। राजद खेमे को उम्मीद है कि दो कायस्थों की लड़ाई का फायदा राजद उम्मीदवार विजय साहू को मिल सकता है। लेकिन यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि उन्हें इस समीकरण से लाभ हुआ या फायदा। वैसे सवर्णों की राजनीतिक सोच अब वोटकटवा की नहीं रही है। इस सीट पर वाम मोर्चा भी अपनी किस्मत आजमा रहा है , लेकिन उसका प्रभाव झुग्गी-झोपड़ियों तक ही सीमित दिख रहा है।
कुर्मी बहुल नालंदा सीट पर नीतीश कुमार के साथ ही उनकी सरकार की अिग्नपरीक्षा है। विकास का नारा देते फिर रहे नीतीश कुमार के इस परंपरागत सीट पर तीन कुर्मियों की जोर-आजमाइश से मुकालबा दिलचस्प हो गया है। इसी का फायदा जातीय राजनीति से दूर रहने वाले शशि यादव को मिलने के कयास लगाये जा रहे हैं। यहां 17 लाख मतदाताओं में से 3.75 लाख कुर्मी, 2.75 लाख यादव, 1.25 लाख कुशवाहा आैर 1.65 लाख मुिस्लम मतदाता हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां नीतीश कुमार ने एक लाख से अधिक मतों से लोजपा प्रत्याशी डॉ. पुष्परंजन को हराया था। इस सीट पर तीन कुर्मियों के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है। वर्ष 2006 में जदयू के टिकट पर उपचुनाव जीते रामस्वरूप प्रसाद कांग्रेस से भाग्य आजमा रहे हैं तो पूर्व विधायक सतीश प्रसाद लोजपा से मैदान में हैं। लव-कुश सम्मेलन की सफलता से सूबे की राजनीति में धाक जमाने वाले सतीश कुमार का भी वही वोट बैंक है जो नीतीश कुमार का है। वहीं जदयू ने नये चेहरे काैशलेंद्र कुमार को मैदान में उतारकर सारे गिला-शिकवा को खत्म करने की कोशिश की है। वहीं वाम मोर्चा से शशि यादव मैदान में डटी हैं। पारंपरिक चुनाव प्रचार अभियान में जुटी शशि आैर भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने अपनी पूरी ताकत इस इलाके में झोंक दी है। वहीं बसपा की हाथी पर सवार होकर देवकुमार राय क्षेत्र में अपनी पहचान बनाते फिर रहे हैं।
 

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