Tuesday, September 16, 2008

मनोरमा, तुम्हारी मौत पर हम शर्मिदा हैं।


मनोरमा, तुम्हारी मौत पर हम शर्मिदा हैं। सरकार ने तुम्हारी मौत के बाद भी न्याय नहीं दिला सकी। मनोरमा, तुम्हारी मौत की खबर से देश बौखला गया तहा। तब मणिपुर की सड़कों पर गिरे तुम्हारे खून के छींटों की दाग दिल्ली स्थित संसद भवन की दिवारों पर भी दिखी थी। उस समय देशव्यापी आंदोलन हुए थे। तुम्हारी मौत से बौखलाए नोबेल पुरस्कार विजेता शर्मिला टैगोर, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर समेत सैंकड़ों लोगों का हुजूम प्रधानमंत्री समेत तमाम हुक्मरानों से सवाल पूछ रहा था-"हमें बताते चलो कि आखिर मनोरमा का क्या कसूर था?' "चरमपंथियों पर लगाम कसने के बहाने आम लोगों का कत्लेआम कहां तक जायज है?' "आखिर तब तक बुलेट को दबाने के लिए बैलेटरूपी बूलेट का इस्तेमाल करती रहेगी सरकार?' तब से लेकर आजतक इन सवालों का जवाब देश के किसी हुक्मरान के पास नहीं है। आखिरकर, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था "द ह्मूमन राइट्‌स वॉच' ने सरगर्मी दिखलाई और 15 सितंबर, 2008 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाले हैं।
ह्मूमन राइट्‌स वॉच संस्था का कहना है कि मौत के बाद भी सरकार की ओर से मनोरमा को न्याय नहीं मिल सका है। मेरा मानना है कि मनोरमा, तुम्हारी मौत नहीं हुई है बल्कि तुमने मणिपुर के लोगों की हक और हुकूक के लिए शहादत दी है। मनोरमा, तुम जुर्म के खिलाफ लड़ने की आवाज बनी हो। तुझे विश्वास है कि एक न एक दिन तुम्हारी शहादत जरूर रंग लाएगी। बस इंतजार है तो उस दिन का। जिस दिन अपना वतन होगा। न किसी पर जुर्म होगा और न होगी इंतहा।
मनोरमा, अगर तुम्हारा कोई जुर्म था तो बस यही कि तुम आसाम राइफल्स को मिले विशेष सुरक्षा अधिकार का विरोध कर रही थी। जिसमें यह प्रावधान है कि सुरक्षाबल किसी को भी इस कानून के तहत उठा (गिरफ्तार) सकता है और उसे गोली मार सकता है। मनोरमा के साथ भी यही हुआ।
सुरक्षा बलों को अंदेशा था कि उसका संबंध चरमपंथियों से है। इसी आशंका के आधार से मनोरमा को वर्ष 2004 में उसके घर से गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के थोड़ी देर बाद ही उसका गोलियांें से छलनी शव सड़क किनारे मिला था। सुरक्षा बलों के इस कार्रवाई से पूरा देश स्पब्ध रह गया था। बेशर्म अधिकारियों ने तब भी दावा किया था कि मनोरमा का संबंध एक चरमपंथी गुट से है। लेकिन उसका खुलास आज तक नहीं किया गया। वहीं उसके परिजन भी सुरक्षाबलों के इस आरोप को खारिज करते रहे हैं। इसलिए हम शर्मिदा हैं।
मनोरमा, तुम भले ही सदा के लिए गहरी नींद में सो गयी हो लेकिन देश व दुनिया राजव्यवस्था की हर चाल पर नजर रखे हुए है। तुम्हारी मौत के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आक्रोशित लोगों को शांत करने व अमल-चैन बहाल करने के बाबत सूबे के एक दिवसीय दौरे पर आये थे। आक्रोशित लोगों को आश्वस्त करते हुए भरोसा दिलाया था कि किसी भी सूरत में दोषियों कोे बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन अफसोस कि प्रधानमंत्री ने भी तुम्हें झूठा आश्वासन दिया। प्रधानमंत्रीजी तबतक लोगों से झूठे आश्वासन करते रहेंगे।
गिरफ्तारी के बाद सुरक्षाबलों ने तुम्हारे साथ क्या सलूक किया। इसका गवाह "द ह्यूमन राइट्‌स वॉच' है। अपनी रिपोर्ट में संस्था ने कहा है कि मनोरमा के साथ हत्या पूर्व संभावित बलात्कार हुए। इसे आसाम राइफल्स के जवानों ने अंजाम दिया। "द ह्यूमन राइट्‌स वॉच' की एक वरीय सदस्य मीनाक्षी गांगुली का कहना है कि मनोरमा की हत्या का दोषी चाहे कोई भी क्यों न हो अगर जांच एजेंसियां या सरकार के लोग सचेत रहते तो प्रदेश में आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगता। लेकिन ऐसा नहीं होने से प्रदेश में अपराध बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मनोरमा देवी की मौत के बाद सुरक्षा बलों के मानवाधिकार उल्लंघन के अनेक मामले सामने आए हैं।'
रिपोर्ट में भारत सरकार से अपील की गई है कि वह सेना, अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस के उन लोगों को सज़ा दें जो मणिपुर में इस हत्या के ज़िम्मेदार हैं। रिपोर्ट का कहना है कि भारत की सरकार सेना और अर्द्धसैनिक बलों की हिरासत के दौरान होने वाली ज़्यादतियों को रोक पाने में विफल साबित हुई है। मीनाक्षी गांगुली ने कहा, "सुरक्षा बल क़ानून का पालन नहीं करते और चरमपंथी होने का शक होने पर न्यायाधीश के सामने लाने की बजाय उन्हें मार डालते हैं।'
गांगुली का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना के नाम की नैतिकता के नाम पर राज्य सरकार इन लोगों का बचाव करती है। इससे मणिपुर के निवासियों के पास न्याय पाने के लिए कोई रास्ता नहीं रहता। मणिपुर में अनेक विद्रोही गुट काम कर रहे हैं जिनमें से कई राज्य की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं और कुछ स्वायत्त कबायली राज्य चाहते हैं। चरमपंथियों से लड़ने के लिए राज्य में बड़ी संख्या में सेना और अर्द्धसैनिक बल तैनात हैं। राज्य में तैनात इन बलों को सेना के विशेष कानून के तहत शक्ति मिली हुई है जिससे उन्हें सज़ा नहीं दी जा सकती। मानवाधिकार गुट काफ़ी समय से इस कठोर क़ानून को समाप्त करने की मांग करता आ रहा है।

No comments: