Tuesday, June 23, 2009

uत्तरी बिहार में तेजी से फैले पैर

नक्सलबादी से उठा तूफान 40 वर्षों में बिहार के अधिकांश हिस्से में पसर गया है। फिर भी, आज उनके पास न तो वो वैचारिक तेज है और न ही कोई स्पष्ट सामाजिक एजेंडा।
कहने के लिए तो बिहार में "सुशासन की सरकार'' है लेकिन फिर भी बिहार कराह रहा है। लोकतंत्र की धरती, महात्मा बुद्ध और महावीर की कर्म और ज्ञानस्थली, बिहार में नक्सलियों का खूनी खेल लगातार जारी है। कुख्यात "जहानाबाद जेल ब्रेक कांड' के बाद पुलिस मशीनरी ने सूबे से नक्सली संगठनों को खत्म करने के लिए दावे तो अनेक किए, लेकिन सच्चाई यह है कि बिहार में नक्सली संगठन लगातार मजबूत होते जा रहे हैं। कभी थाने लूट लिये जाते हैं, तो कहीं रॉकेट लांचर से अर्धसैनिक बलों पर हमले हो रहे हैं। पुलिस आधुनिकीकरण की सारी योजनाएं माओवादियों के सामने कागजी शेर साबित हो रही हैं जबकि खुफिया तंत्र भी माओवादी रणनीति के आगे पंगु साबित हो रहा है।
सत्तर के दशक में मुशहरी (मुजफ्फरपुर, जहां राज्य की पहली नक्सलवादी घटना घटी थी), भोजपुर, औरंगाबाद और जहानाबाद की धरती नक्सलियों के खूनी खेल से लाल हुआ करती थी। वर्षों तक मध्य बिहार और भोजपुर में चल रहे इस खूनी खेल से उत्तरी बिहार का अधिकांश हिस्सा अनजान रहा। तब तर्क दिये जाते थे कि मध्य बिहार और भोजपुर की धरती नक्सलियों के लिए इसलिए उर्वर साबित हो रही है कि इन इलाकों में वर्षों तक जमींदारों व सामंतों के जुल्म चलते रहे थे। लेकिन आज हालात बदल गये हैं। एमसीसी और पीपुल्स वार के विलय के बनी भाकपा (माओवादी) के गठन होते ही तेजी से सूबे के अन्य हिस्से में नक्सलियों का फैलाव हुआ। देखते ही देखते पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, वैशाली और हाजीपुर जिले के ग्रामीण इलाके नक्सली आतंक के चपेट में आ गये। तीन महीने पहले ही माओवादियों ने वैशाली में पुलिस जवानों से चार रायफल लूट लिये। इस इलाके में माओवादियों ने बैंक लूट की घटना को भी अंजाम दिया है। नवादा और औरंगाबाद में पिछले चार महीने में ही दो दर्जन पुलिसकर्मी नक्सली हमले में मारे गये हैं।
माओवादियों का कहना है कि सूबे की 21 हजार एकड़ जमीन या तो नक्सलियों की वजह से विवादित हो गयी हैं या फिर उनके कब्जे में है। इन जमीनों पर माओवादी समर्थक खेती कर रहे हैं जबकि सैकड़ों एकड़ जमीन नक्सलियों की वजह से बंजर होने की स्थिति में है। वर्षों पहले नक्सलियों ने उन जमीनों पर लाल झंडा गाड़कर उसे जमींदारों से छीन लिया था।
कभी जातीय गोलबंदी में विश्वास करने वाली नक्सलपंथियों के फैलाव का एक बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि अब वे प्रशासनिक भ्रष्टाचार और व्यवस्था की खामियों की चर्चा करके गरीब ग्रामीणों के बीच पहुंच रहे हैं। पूर्वी-उत्तरी बिहार के भागलपुर और खगड़िया के कुछ इलाके माओवादियों की गिरफ्त में आ चुके हैं। "बिहार का लेलिनग्राड' कहलाने वाले बेगूसराय जिले में भी इन दिनों माओवादी गतिविधियां देखी जा रही हैं। इस बाबत आर्थिक विश्लेषक शैवाल गुप्ता कहते हैं, "प्रदेश में भूदान की जमीन भी दबंगों ने कब्जा लिया, फिर गरीबों के पास जीने का कोई सहारा नहीं रहा, इसलिए वे माओवादियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।'
इन सब घटनाओं के बीच तीन वर्षों में माओवादियों को भी गहरा झटका लगा है। भाकपा (माओवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्र समेत करीब छः सौ हार्डकोर नक्सली गिरफ्तार किए जा चुके हैं। बावजदू इसके नक्सली तेवर कम होते नहीं दिख रहा। अब तो वे मोबाइल टॉवर को भी निशाना बनाने से नहीं चूक रहे हैं। जनवरी से अबतक चार दर्जन से अधिक टॉवरों को डायनामाइट से उड़ाया गया है। नक्सलियों की हिंसक गतिविधियों पर लगाम क्यों नहीं लगा पा रही है सरकार, इस बाबत आईजी ऑपरेशन एसके भारद्वाज कहते हैं, "सरकार नक्सलियों के खिलाफ व्यापक अभियान छेड़े हुए है। सैकड़ों हार्डकोर माओवादी गिरफ्तार किये गये हैं।'
हालांकि बिहार की भौगोलिक स्थितिया नक्सलियों के अनुकूल नहीं है। इसलिए वे यहां झारखंड और छातीसगढ़ जैसे गुरिल्ला युद्ध चलाने में सक्षम नहीं हो पाते। इसके अलावा उत्तरी-पूर्वी बिहार के कुछ इलाके मसलन कोसी प्रमंडल के जिलों में आज भी सामाजिक सामंजस्य बना हुआ है और लोग वर्ग भेद जैसी बातों पर यकीन नहीं करते। वे वर्तमान व्यवस्था से खिन्न जरूर हैं लेकिन इसे बदलने के लिए जो दावे नक्सली करते आ रहे हैं उनके प्रति वे आश्वस्त नहीं हैं। बावजूद इसके नक्सली संगठन आज बिहार के हर इलाके में अपनी उपिस्थति दर्ज करा रहे हैं। यह इस बात का संकेत है कि बिहार सरकार नक्सली संगठनों से निपटने में आज भी असक्षम है।
प्रमुख नक्सली हमले
Ø 30 अगस्त, 2008---पश्चिम चंपारण के बुरूडीह में बारूदी सुरंग विस्फोट में 12 जवानों की हत्या कर दी गयी।
Ø फरवरी, 2009--- महीने में नवादा के कौलाकोल इलाके में नक्सलियों की महिला दस्ता ने थानाप्रभारी समेत 12 जवानों को कब्जा में करने के बाद पहले चाकू से प्रहार किया इसके बाद उनकी ही बंदूकों से गोलियों बरसानी शुरू कर दी और सारे हथियार लूट लिये।
Ø 21 अगस्त, 2008---गया जिले के रानीगंज में माओवादियों ने 6 पुलिसकर्मी की हत्या कर दी। इसमें दो माओवादी समेत एक आम नागरिक मारा गया।

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