Thursday, July 9, 2009

दागदार हुआ सुशासन

पिछले एक महीने में ही दो इंजीनियर, 16 व्यवसायी समेत 125 लोग मारे गये हैं, जो सुशासन के दावों की पोल खोल रही है।

लोकसभा चुनाव खत्म होते ही बिहार में माफिया राज की वापसी के संकेत मिलने शुरू हो गये हैं। प्रदेश अभियंता संघ नवादा में पदस्थापित कन्नीय अभियंता अरुण कुमार की हत्या को भूला भी नहीं था कि 18 जून को सीतामढ़ी में पदस्थापित कार्यपालक अभियंता योगेंद्र पांडेय की रहस्यमयी परिस्थिति में जिला समाहरणालय परिसर में लाश मिलने से सनसनी फैल गयी। इसके कुछ दिन पहले बिल्डर सत्येंद्र सिंह सत्ता संरक्षित अपराधियों के शिकार हुए। स्पीडी ट्रायल चलाकर अपराधियों को फटाफट सजा दिलवाने का दावा करने वाली नीतीश कुमार की सरकार में सत्येंद्र सिंह हत्याकांड के आरोपी पूर्व सांसद और जदयू नेता विजय कृष्ण अपने बेटे चाणक्य संग फरार चल रहे हैं। इस बाबत पूछते ही डीजीपी डीएन गौतम भड़क गये और उन्होंने कहा, "पुलिस कोई ठेकेदार नहीं, जो तुरंत अपराध नियंत्रण करने का ठेका ले ले। विजय कृष्ण किसी के पॉकेट में नहीं हैं जिन्हें वहां से निकालकर सबके सामने ला दिया जाये।'
एक महीने में ही यह चर्चित हत्याओं का तीसरा मामला है, तो क्या इसे शुरुआत मान लिया जाये? संकेत तो कुछ इसी तरह के मिल रहे हैं। बीते महीने मारे गये ट्रांसपोर्टर संतोष टेकरीवाल के हत्यारों तक पुलिस पहुंच भी नहीं पायी थी कि अपराधियों ने अररिया के लोक अभियोजक देवनारायण मिश्र को गोली मार दी। जबकि स्व.मिश्र कई दफा सुरक्षा की गुहार लगा चुके थे। लोकसभा चुनाव में मिले अपार जनसमर्थन से फूले नहीं समा रही नीतीश कुमार के राज में पिछले एक महीने में ही 16 व्यवसायियों समेत 125 लोग मारे गये हैं।
ये कुछ घटनायें बताती हैं कि प्रदेश में शासन चाहे जिस किसी भी पार्टी की क्यों न हो, ईमानदारी और कतर्व्यनिष्टा से काम करने का खामियाजा अधिकारियों समेत आमलोगों को भुगतना ही पड़ेगा। रंगदारों की दबंगई और ठेका माफियाओं का रुतबा नीतीश राज में भी कायम है। उनकी दबंगई का आलम यह है कि बाढ़ स्थित नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी), जहां प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये का निविदाएं निकलती हैं, में सत्ताधारी दल के एक स्थानीय विधायक की इजाजत के बिना पत्ता तक नहीं खड़कता। जेल से फरार चल रहे कई संगीन आरोपों के अभियुक्त विवेका पहलवान अपने गुप्त ठिकाने से माफिया राज चला रहा है तो बेउर जेल में बंद कुख्यात अपराधी बिंदू सिंह का दहशत झारखंड तक बरकरार है। हाल ही में झारखंड पुलिस ने बिंदू सिंह को रिमांड लेकर कड़ी पूछताछ की तो कई संगीन मामलों का खुलासा हुआ। लोकसभा चुनाव में हार के बाद से अधिकतर बाहुबली पर्दे के पीछे से ठेका राज चला रहे हैं। खबर तो यह भी है राजद शासनकाल में दर्जनों हत्या, लूट और अपहरणकांडों के अभियुक्त रीतलाल यादव ने भी पर्दे के पीछे से सत्ताधारी दल के एक विधायक के शह पर दानापुर स्थित डीआरएम कार्यालय में अपना सिक्का जमा लिया है। पूर्व सांसद सूरजभान, प्रभुनाथ सिंह और जदयू विधायक अनंत सिंह समेत ऐसे कई बाहुबली हैं जो गाहे-बगाहे ठेकेदारी के पेशे में अपना दबदबा जमाये हुए हैं और मनमानी वसूली के धंधे में लिप्त हैं। आश्चर्य तो यह कि निविदा कानून का उल्लंघन करने वाले इन बाहुबलियों के कारनामों से सियासी गलियारा अंजान नहीं है। सत्ता संरक्षित अपराध का ऐसा गठजोड़ बिहार और उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे अन्य प्रदेशों में शायद ही देखने को मिलता है।
बिहार में ठेकेदारी को लेकर हिंसा कोई नयी बात नहीं है। पटना के पुनाईचक स्थित सीपीडब्ल्यूडी कार्यालय के बाहर लालू-राबड़ी शासनकाल में बंदूकें गरजा करती थीं। अनिसाबाद स्थित सिंचाई भवन परिसर भी कई दफा बमों के धमाके और गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजा था। उस दौरान 60 इंजीनियरों की हत्याएं सत्ता संरक्षित अपराधियों ने कर दी थी। नीतीश कुमार के शुरुआती शासनकाल में इसपर लगाम लगा था लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरीके से अपराधियों और असामाजिक तत्वों का ग्राफ बढ़ना शुरू हुआ है उससे सुशासन का दावा सवालों के घेरे में आ गया है।
बीते साल औरंगाबाद के कार्यपालक अभियंता अमावस्या राम की मौत हृदयाघात से हो गयी। इस पर भी बवाल मचा। महीनों तक चर्चा का बाजार गर्म रहा कि एक दबंग ठेकेदार के दबाव में आकर विभागीय सचिव ने इंजीनियर को ऐसी डांट पिलाई की उनकी मौत हो गयी। लालू-राबड़ी शासन काल में आइआइटी इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की हत्या का मामला आज भी प्रदेश के लोगों के दिलो-दिमाग में है। हालांकि जांच रिपोर्ट में उनकी हत्या लूट-पाट के उद्देश्य की गयी बताया गया है।
इंजीनियर योगेंद्र पांडेय की मौत, एक ही साथ कई सवाल छोड़ गया है। जिला प्रशासन के पास इस बात का जवाब नहीं है कि दो महीने में ही पांच बार लिखित रूप से सुरक्षा की गुहार लगाने के बावजूद कार्यपालक अभियंता की जान-माल की हिफाजत क्यों नहीं की जा सकी? लगातार मिल रही धमकियों की लिखित रूप से शिकायत करने के बावजूद विभागीय अधिकारी (सचिव) आरके सिंह क्यों मौन रहे? जातीय राजनीति का अखाड़ा रहा बिहार इस मामले को भी जातीय चश्मे से देख रहा है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक अभियंता ने कहा, "विभागीय सचिव, एसपी और ठेकेदार (जिससे विवाद चल रहा था) सभी एक जाति विशेष से आते हैं। इसलिये मामले को रफा-दफा करने की पूरी तैयारी चल रही है।' बिहार अभियंत्रण सेवा संघ के महासचिव राजेश्वर मिश्र ने "द पब्लिक एजेंडा' को बताया, "स्व. पांडेय अगर 2 जून को सड़क निर्माण में घटिया सामग्री (मेटल) लगाने वाली वत्स कंस्ट्रक्शन कंपनी को काली सूची में नहीं डालते तो संभव था कि 6 जून को पुलिस अधीक्षक क्षत्रनील सिंह की मौजूदगी में उनके आवासीय कार्यालय पर हमला नहीं हुआ होता और न ही 18 जून को जिला परिसर में उनकी लाश मिलती।' काली सूची में डाली गयी वत्स कंस्ट्रक्शन कंपनी के निदेशक किशोर सिंह हैं जो पूर्व सांसद धनराज सिंह के दामाद बताये जाते हैं। उनके करीबी दोस्त विवेक सिंह और राजीव सिंह हैं। सीबीआइ इन तीनों को संदिग्ध मान रही है। 15 सदस्यीय जांच टीम का नेतृत्व कर रहे सीबीआइ के संयुक्त निदेशक एसपी सिंह से पूछने पर सिर्फ इतना ही कहा, "प्लीज, इस संबंध में कुछ मत पूछिये। काम करने दीजिये। जल्द ही सबकुछ सामने आ जायेगा।'
इस मामले में एक ही साथ शक की सूई कई ओर घुमती है। सवाल है कि परसौनी के बीडीओ की गाड़ी से उनका शव अस्पताल पहुंचाया गया, तो फिर लावारिस स्थिति में लाश को छोड़कर विभागीय चालक फरार क्यों हो गया? उस समय स्वयं बीडीओ कहां थे? आखिर क्यों लाश को पहले देखने वाले अपर समाहर्त्ता (एडीएम) शैलेन्द्रनाथ चौधरी, उनका चालक विश्वनाथ कापर और सरकारी सुरक्षा गार्ड एक ही साथ संवेदनहीन हो गये? एक जिम्मेवार अधिकारी होने के बावजूद श्री चौधरी ने अपना मुंह बंद रखना क्यों मुनासिब समझा? ये कुछ सवाल हैं जिसका हल ढूंढ़े बिना सही नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता। इस बाबत पथ निर्माण मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने "द पब्लिक एजेंडा' को गोलमटोल जवाब दिया, "विभाग में किसी की मनमानी नहीं चलने दी जायेगी। दोषियों को सजा होगी। डा। योगेंद्र पांडेय की कुर्बानी ठेकेदारी के पेशे में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने में सहायक सिद्ध होगा।' वहीं विपक्ष इस तर्क को सिरे से खारिज कर रहा है। लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान के अनुसार, "योगेंद्र पांडेय ठेकेदारी के पेशे में फैले भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये।' प्रदेश की लगातार गिरती जा रही कानून-व्यवस्था सुशासन को दागदार कर रही है।
 

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