Thursday, July 9, 2009

पर्दे के पीछे सियासी खेल

झारखंड में दाग़ी पूर्व मंत्रिओं की गिरफ्तारी के मुद्दे पर चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा है। कांग्रेस की कुचालों से यूपीए में ऊहापोह की िस्थति उत्पन्न हो गयी है।
झारखंड के दो पूर्व मंत्रिओं एनोस एक्का और हरिनारायण राय के खिलाफ निगरानी अदालत द्वारा जारी वारंट की तामील को लेकर इन दिनों खूब राजनीतिक जोर-आजमाइश चल रही है। सुरक्षा में लगी पुलिस भी इन दोनों के साथ कहां गायब है, इसका पता सरकार नहीं कर सकी है। इस खेल का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि कांग्रेस की खुटचाल ने राज्य में न केवल राजनीतिक अनिश्चिन्तता की िस्थति उत्पन्न कर दी है, बिल्क एक साथ यूपीए के पूरे कुनबे को चकरा कर रख दिया है।
यूपीए में शामिल अन्य दलों और विधायकों को तो उसी समय ऐसी चाल का आभास हो जाना चाहिए था जब कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव के समय अपनी शर्तें रखी थीं। चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी धीरज साहू की जीत पक्की करके पर्दे के पीछे से ही सही, कांग्रेस अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गयी है। महीनों से चल रहे सियासी उथल-पुथल के बीच पहले तो कांग्रेस ने दो जुलाई को राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ा दी और फिर चुप्पी साध ली। राजधानी रांची में राजनीतिक हलचल तब तेज हो गयी, जब उसी दिन पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा समेत तीन निर्दलीय विधायकों कमलेश सिंह, भानुप्रपात शाही और बंधु तिर्की पर निगरानी विभाग में एक मुकदमा दर्ज हुआ। इन विधायकों पर आय से अधिक सम्पत्ति रखने, पद के दुरुपयोग और अवैध तरीके से विदेश यात्रा करने समेत कई आरोप हैं। पूरे मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि उन्हीं विधायकों पर निगरानी का शिकंजा कसा है, जिन्होंने पर्दे के पीछे से राष्ट्रपति शासन का विरोध किया था या जो यूपीए के बैनर तले सरकार बनाने के लिए अधिक सक्रिय दिखे थे।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और निर्दलीय सांसद इंदरसिंह नामधारी "द पब्लिक एजेंडा' से कहा, "यह कैसी विडंबना है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री समेत छह मंत्रिओं पर निगरानी का मुकदमा दर्ज है। इनमें से दो पहले से ही फरार चल रहे हैं। आठ विधानसभा सीटें खाली हैं। सदन की बैठक को हुए छह महीने से अधिक समय हो गये है। ऐसी िस्थति में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाना यह संकेत देना है कि कांग्रेस ने अब भी सरकार बनाने का लालच नहीं छोड़ा है।'
राजनीतिक विश्र्लेषकों का मानना है कि राजनीतिक दांव-पेंच में कांग्रेस माहिर रही है। पार्टी वर्षों तक कुछ इसी तरह की राजनीतिक चाल बिहार और उत्तर प्रदेश में चलती रही, जिसका खामियाजा उन राज्यों में अभी तक उसे भुगतना पड़ रहा है। लेकिन कांग्रेस नेता मनोज यादव कहते हैं, "पार्टी कोई चाल नहीं चल रही है, बिल्क सही तरीके से हालात का जायजा ले रही है।'
प्रदेश में लूट की संस्कृति बिहार से होते हुए यहां आयी है। शायद देश का यह इकलौता प्रदेश है, जहां बात-बात पर सौदेबाजी होती है। वैसे राजनीतिक गलियारे में इस बात पर भी बहस छिड़ी है कि कांग्रेस राज्यसभा चुनाव के समय हुई सौदेबाजी का एक-एक कर सारे विधायकों से बदला लेना चाहती है। यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा समेत अन्य मंत्रियों पर निगरानी का कसता शिकंजा राजनीति षड्यंत्र मानी जा रही है। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री भानुप्रताप शाही का कहना है, "निर्दलीय विधायक राजनीतिक षड्‌यंत्र के शिकार हो रहे हैं। अगर हम पर लगे आरोप सही हैं तो फिर सरकार क्यों नहीं स्वास्थ्य विभाग में हुई बहालियों की जांच करवा ले रही है।' वहीं मानव संसाधन मंत्री बंधु तिर्की ने कहा, "निर्दलीय के साथ-साथ आदिवासी होना भी इस राज्य में गुनाह हो गया है। गांवों में पुलिस आदिवासियों को नक्सली बताकर गिरफ्तार करती है तो राजनीति में सक्रिय आदिवासियों को अनर्गल आरोपों में फंसाया जा रहा है।' सच्चाई चाहे जो भी हो, लेकिन इस बात बहस तेज हो गयी है कि अधिकारी राजनीतिक आकाओं के इशारे पर कार्रवाई कर रहे हैं। यही कारण है कि कई दिनों से फरार चल रहे दोनों मंत्रियों एनोस एक्का और हरि नारायण राय के संदिग्ध ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की गयी। फिर भी ये दोनों पुलिस की पहुंच से अभी तक दूर हैं।
राजनीतिक प्रयोगशाला बन चुके झारखंड में सब कुछ नया होता है, सो इन दोनों की फरारी भी नये तरीके से हुई है। दोनों अपने सरकारी बॉडीगार्ड के साथ फरार हैं। इन दोनों विधायकों पर इसी वर्ष जनवरी में मुकदमा दर्ज हुआ था। उस समय से निगरानी सुस्त रही। फिर आखिर ऐसा क्या हो गया, जिसकी वजह से सक्रियता बढ़ गयी। निगरानी विभाग के डीजी नेयाज अहमद का कहना है, "पुलिस किसी के दबाव में काम नहीं कर रही है। अधिकारी इन दोनों पर लगे आरोपों के साक्ष्य जुटाने में लगे हुए थे।'
झारखंड की 82 सदस्यीय विधानसभा में राजनीतिक जोड़तोड़ शुरू से ही होता रहा है। आंकड़ों के खेल में आदिवासी अस्मिता तार-तार होती रही। पहली विधानसभा ने तो किसी तरह अपना कार्यकाल पूरा कर लिया, लेकिन दूसरी विधानसभा में खूब अटकलें लगीं। चौदहवी लोकसभा में परमाणु करार पर केंद्र सरकार को समर्थन देने का तत्काल फायदा दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मिला। वे कांग्रेस के सहयोग से दूसरी बार सत्तासीन हुए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस सौदेबाजी का बदला कांग्रेस लेने ही वाली थी कि तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में शिबू सोरेन की हार हो गयी। फिर क्या था, झामुमो की मजबूरी समझ कर कांग्रेस ने पलटा मारा। अब पर्दे के पीछे से कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव की व्यूह रचना कर रही है।

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