Thursday, July 23, 2009

"सुशासन' में कहां से "दु:शासन?'

हिन्दुओं में यह कथा प्रचलित है कि अगर समाज में दु:शासन बनकर कोई द्रोपदी का चीरहरण करना चाहेगा तो कृष्ण बनकर कोई उसकी लाज भी बचाने अवश्य ही आयेगा, लेकिन यह क्या? बिहार में सुशासन की बात करने वाली नीतीश सरकार में ही राजधानी पटना में 23 जुलाई को एक लड़की का सरेआम चीरहरण होते रहा और कानून के रखवाले तमाशबीन बने सबकुछ देखते रहे। 25 वर्षीया वह लड़की राजधानी के व्यस्त इलाकों में से एक एक्जीविशन रोड में करीब एक घंटे तक चीखती रही, चिल्लाती रही, न्याय की भीख मांगती रही। आतताइयों से बचाने की गुहार लगाती रही। बावजूद इसके इंसानियत को तार-तार कर देने वाली इस घटना पर किसी की संवेदना नहीं जागी। आखिर जागती भी तो कैसे? लड़कियां या महिलाएं जो उपभोग की वस्तु समझी जाती हैं। सभ्य समाज, आधुनिकता और खुलेपन की वकालत करने वाले सैकड़ों लोग पूरी घटना के गवाह बने रहे। फिर भी मौन स्वीकारोक्ति। आखिर क्यों? क्या वे भूल गये कि झारखंड की यह इकलौती बेटी नहीं है जो अपने घर से अकेले ही रोजी-रोगजार की तलाश में निकली है? ग्लोबल दुनिया में लाखों लड़कियां प्रतिदिन रोजगार की तलाश में घरों से बाहर जा रही हैं। महानगरों में अकेली रह रही हैं। तो फिर इस लड़की का गुनाह क्या था? यही न कि उसने किसी पर विश्वास करके घर से अकेली ही बाहर निकली थी। क्या आज के समाज में किसी पर विश्वास करना गुनाह हो गया है? इन सारे प्रश्नों का जवाब सरकार के साथ ही सभ्य समाज के लोगों को देना होगा। वरना वह दिन दूर नहीं, जब मनचलों की हरकतों से देश और दुनिया की सारी गलियां, सड़कें और चौक-चौराहे तबाह हो जायेंगे।
और फिर कानून के रखवाले पुलिस...।
अपनी नाकामी को छुपाने के लिए एक से एक मनगढ़ंत कहानियां गढ़ने लगी। इलेक्ट्रानिक मीडिया के जरिये जब पूरा देख इस घटना का गवाह बना तो भी करीब दो घंटों बाद पुलिस की नींद खुली। उसमें भी ट्रैफिक पुलिस की। घंटों ड्यूटी से गायब रहे पेट्रोलिंग दारोगा शिवनाथ सिंह। मामले की गंभीरता को देखते हुए दारोगा को निलंबित कर दिया गया है। फिर भी इस घटना की जवाबदेही से नहीं बच सकती। आइपीएस अधिकारी एडीजी नीलमणि के बयान और भी चौकाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि लड़की देह व्यापार के धंधे में लिप्त थी। क्या नीलमणि को किसी ने इस तरह के संवेदनहीन बयान देने के लिए बाध्य किया था? क्या सरकार की यह जिम्मेवारी नहीं बनती है कि राजधानी समेत अन्य जगहों पर चोरी छिपे चल रहे देह व्यापार के अड्डे को बंद कराया जाये? आखिर तबतक दूसरे की इज्जत से खिलवाड़ करती रहेगी बिहार पुलिस। क्या नीलमणि कभी बिहार पुलिस के गिरेबां में झांकने की कोशिश किये हैं। ठीक है थोड़े समय के लिए नीलमणि की बातों पर विश्वास भी कर लिया जाये तो भी क्या देह व्यापार करने वाली लड़कियों से पेश आने का यही तरीका है? पुलिस प्रवक्ता होने के नाते आखिर वे क्यों भूल जाते हैं कि सुशासन की सरकार के करीब चार वर्षों में ही सूबे में करीब तीन हजार महिलाओं के अस्मत के साथ खिलवाड़ किया है मनचलों ने। फिर वे किस कानून का हवाला देकर कहते हैं झारखंड की यह लड़की देह व्यापार करती थी। क्या सरकार के पास मजबूरीवश देह व्यापार करने वाली लड़कियों को इस दलदल से निकालने की कोई योजना है? अगर है तो फिर क्यों नहीं, वैसी लड़कियों को इस धंधे से मुक्त कराने के प्रयास किये जा रहे हैं। देर-सबेर इसका जवाब सरकार को देना ही पड़ेगा।

1 comment:

रंजीत/ Ranjit said...

हैरत के साथ-साथ आक्रोश भी हो रहा है। हैरत इसलिए कि एग्जीवीशन रोड इलाके को पटना का प्रतिष्ठित और पॉश इलाका माना जाता है और यहां बगल में ही दो-तीन थाने हैं। लेकिन गुंडों ने इसकी परवाह नहीं की। इससे साफ है कि बिहार पुलिस कितना सुशासन कायम करने में कामयाब हुई है। आक्रोश इस बात को लेकर कि शीर्ष पुलिस अधिकारी नीलमणि ने पीड़ित महिला का देह-व्यापार में लिप्त होने का बयान देकर यह साबित कर दिया है कि बिहार पुलिस कितनी कायर हो चुकी है कि वह अपना दामन बचाने के लिए वह साइकलॉजिकल गेम खेलने से भी बाज नहीं आती। मानो पतिता की कोई इज्जत ही नहीं होती।
यह घटना साबित करती है कि नीतीश कुमार का सुशासन वास्तव में तोताराम का सुशासन से ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन उस समाज को क्या कहें, जो सड़क पर एक महिला को बेआबरू होते देखते रहा। दरअसल, हमारी सामाजिक संवेदना लगातार भोथडी होती जा रही है। हम अतिव्यक्तिवाद के अंध कूप की ओर बढ़ रहे हैं। मीडिया और बाजारवाद इसके लिए जिम्मेदार है। समाज और सरोकार के मामले में हमेशा प्रतिमान खड़ा करने वाले बिहार के लोगों को इस पर सोचना चाहिए।
सुंदर लेख के लिए बधाई।